गुरुवार, 27 जनवरी 2011

दगा दे गई




फर्क कुछ लगता नहीं जिन्दगी और मौत में
जिन्दगी तो जिन्दगी मुझे मौत भी दगा दे गई

बार बार  करवटें बदलीं कबाबे सींक  की तरह
जलने का गम नहीं पर जलन भी दगा दे गई

हर दरवाजे सिर झुका  मौत की मैंने  दुआ मांगी
दुआएं क्या करतीं जो  किस्मत ही दगा दे गई

वफ़ा की थोड़ी  उम्मीद की  अपनी मुहब्बत से
मुहब्बत तो मुहब्बत दुश्मनी भी दगा दे गई

बेपरवाह खेलते रहे हम   जुआ बड़ी ईमानदारी से
हाथ में थी इक्कों की तिकड़ी  वह भी दगा दे गई







शनिवार, 22 जनवरी 2011

ग़ज़ल न जाने कहाँ खो गई







तू चांदनी सी कोमल नदिया सी चंचल
तू यादों की धारा में सुवासित कँवल
तितलियों के पीछे वो तिरते तेरे कदम
वो भी क्या हसीं दिन थे ओ मेरे सनम
यादों में वो किलकारियां अब हैं खनकतीं
यादों की वो डोरियाँ क्यों कर हैं यूं उलझतीं
इस दुनिया से बिलकुल अलग वो दुनिया
कहाँ खो गई सनम बचपन की वो दुनिया
अब तो राहों में हैं बिछी काँटों की डलियाँ
हाथ बने जाल क्यों यूं मसलते हैं कलियाँ
गहरे पानी में छिपती आज क्यों मछलियाँ
खेलने से डरती हैं हमसे सारी तितलियाँ
वो प्रेमी कपोतों की जोड़ी कहाँ गुम हो गयी
मुहब्बत की वो ग़ज़ल न जाने कहाँ खो गई







शनिवार, 8 जनवरी 2011

पवित्र निर्णय



जज साहेब बड़े रोब-दाब में
अपने आसन पर डंटे थे
मैं एक मुजरिम का
वकील था.....
मेरे मोअक्किल पर
एक  दो नंबर के पाजी लड़के का
आरोप था
कि उसने
उसकी  ड्रीम गर्ल का
मोबाइल नंबर
किसी एक नंबर के आदमी को
दे दिया
और उसने
उसकी ड्रीम गर्ल को डांटा........  
मैंने उस पाजी से
पूछ-ताछ शुरू की-
"क्या तुमने एक नंबर के आदमी को
मोबाइल पर कभी बताया
कि तुम किसी हसीना के साथ 
फिल्म  गोल-माल टू देखने गए थे?"
लड़के ने कहा-
"मैंने कभी एक नंबर के आदमी से
बात नहीं की,
यह मेरा रिकार्ड है."
मैंने पूछा-
"लेकिन तुम्हारे  मोबाईल का
रिकार्ड बताता है कि
तुमने उससे बात की 
और उसे बताया कि 
तुमने एक हसीना के साथ 
फिल्म देखी,
हाथ में हाथ लिए!"
कई बार झूठ बोलने के बाद,
उस दो नंबर के पाजी ने
स्वीकार किया कि उसने ही
अपनी ड्रीम गर्ल का
मोबाईल नंबर 
एक नंबर के आदमी को दिया.
जज साहब ने टिप्पणी की-
"यह लड़का तो झूठ पर झूठ बोलता है....
ठीक है, मै कल निर्णय सुनाऊँगा."
और कल जज साहब ने 
उस दो नंबर के पाजी के पक्ष में 
अपना पवित्र निर्णय दे दिया !!!!!!
फिर जज साहब  ने
मुझ वकील को भी
धमकी दे डाली-
"याद रखो,
तुम वकील साहब हो तो
मै जज साहब हूँ!!"

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

सिर्फ मैं और मैं ही रहूं



आदमी की आंखें बदल गयीं
उसका दिल बदल गया
उसका जमीर जल गया
उसका खून गन्दा हो गया  
उसकी कलम का
लक्ष्य बदल गया
उसमें स्याही की जगह
कालाधन भर गया

जो सियार की तरह
भ्रष्टाचार पर बहुत
हुआं-हुआं कर रहे थे-
उनके गले में भ्रष्टाचार
अटक गया

फिर भी वे अपनी रक्षा में
अपने साथियों के साथ
शब्दों का जाल
बुन रहे हैं
अपना ट्रायल खुद कर रहे हैं
और खुद ही
अपनी पीठ ठोंक रहे हैं

उनका पेशा है
किसी से भी बात करने का
वे बात करने की
पूरी स्वतन्त्रता
चाहते हैं
और चाहते हैं कि
दूसरा न बोल पाए 
दूसरा न रो पाए
दूसरा न पनप पाए 
सिर्फ मैं और मैं ही रहूं
सब कुछ मैं के नीचे हो
सेवा में हो
स्वागत में हो
माले में हो
जयगान में हो

सारे कमजोर कांपते हाथ
उसके हाथ को मजबूत
और मजबूत करते रहें
उनकी मौज हो और
 दूसरे  मर भी न पाएं

मंगलवार, 4 जनवरी 2011

दूसरों की गली में मेरा फेरा हो गया था



नसीब ढीला दिल कतरा कतरा हो गया था 
नाकामयाबी    का  जो   खतरा   हो   गया   था

अपने ही    नसीब में   क्यों   काली रातें थीं
सबका ही नसीब क्यों सुनहरा हो गया था

शायद   मेरा   यही   सोचते   रहना ही कहीं
मेरी जिन्दगी का इक  दायरा हो गया था

पास अपने खुदा ने जो बख्शा  देखा नहीं 
दूसरों की   गली में मेरा फेरा हो गया था 

झोंपड़ी    से  उस   महल  को देखते  -  देखते
क्या मैं बस सपनों का चितेरा हो गया था

महल की रोशनी देखी ईंटो के आँसु नहीं
शायद मेरा मन ही अन्धेरा हो गया था

शनिवार, 1 जनवरी 2011

अरे तुम चौथे खम्भे नहीं हो




तुम
महादेवी की तरह नीर भरी बदली हो
या फिर मीरा बन कर विष पीते हो
अरे मूर्ख नीरा बन कर आगे आओ
बड़े-बड़े आफर लाओ
पैंतालीस मिनट में
पैंतालीस करोड़ कमाओ
क्या-क्या बतलाऊं रे बेजान
मैं हूँ इस लोकतंत्र का नेता महान

अरे तुम चौथे खम्भे नहीं हो
चौथे खूंटे हो
जिसमें तुम स्वयं बंधे हो
और जिस तीस ने खूंटा तोड़ा
मेरा पट्टा गले में बांधा
वही बनाते देश का चौथा खम्भा
अब तो मुझको पहचान
मैं हूँ इस लोकतंत्र का नेता महान

अरे चौकीदारी करते हो
और चोरी नहीं करते हो
फिर क्यों चौकीदारी करते हो?
मूड़-मुड़ाय हो जाओ सन्यासी
अरे सत्यानाशी
अधिकारों का दुरुपयोग ही
अधिकारी का अधिकार
मुझसे लो इस युग का ज्ञान
मैं हूँ इस लोकतंत्र का नेता महान

न लल्लू को खून की छूट
और न कल्लू को बलात्कार की छूट
मूरख कोई संगठन बनाओ
आन्दोलन चलाओ
लेवी लो/हत्या करो/बलात्कार करो
और मेरी नीति से छूट पाओ आसान
मैं हूँ इस लोकतंत्र का नेता महान

मत बन तू मुन्नी
मुन्नी हो जाती है बदनाम
बनना हो तो अरुन्धती बन
शहरों की हीरोइन
और वन की नायिका बन
माँ की गोद को डंस
आओ मेरे पास विहंस
करो हास-परिहास रात-विहान
मैं हूँ इस लोकतंत्र का नेता महान 

नए वर्ष पर ठण्ड से कांपते लोगों को अलाव मिले....



नए वर्ष पर
फूटपाथ पर
ठण्ड से कांपते लोगों को
अलाव मिले....
मजदूरों को 
उचित मजदूरी मिले....
हर चूल्हा  जले
हर के लिए भोजन पके.......
हड्डियों में बची खाला
को कोई  एक कम्बल दे दे....
गाँव के बूढ़े बाबा को
कोई  एक ऐनक दे दे.....
आरुषियों को
कोई न्याय दे दे.....
कूड़े में अन्न तलाशते बच्चों
को कोई अक्षर दे दे....
भ्रष्टाचारियों को कोई
सन्मति दे दे......
धर्म, जाति आदि के नाम पर 
समाज को बाँटने वाली शक्तियों को
कोई सच्ची भक्ति में रम दे......
इस नव वर्ष पर......