मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

पर आदम आदम एक कहाँ

अपना सपना उनका   सपना
सबके सपने अलग-अलग हैं
सबकी     मंजिल   एक   मगर
राहें सबकी   अलग-अलग   हैं
        सब मिलजुल कर चल सकते थे
        पर आदम    आदम     एक     कहाँ
ढूंढ़     रहे    थे सब दुश्मन  को
हथियारों     से       लैस       खड़े
हर का दुश्मन आदम निकला
सब      खून     बहाते    अड़े-खड़े
        खून   खराबा रुक सकता था
             पर आदम आदम एक कहाँ
दिखती दुनिया अब अबला सी
आसमान     सहमा -  सहमा-सा
रोज      धमाके     गूंजा      करते
आया   है    मौसम     मरघट सा
        मौसम बदला जा सकता था
        पर आदम   आदम एक कहाँ
वे घर की    दीवार बनाते
छत के नीचे प्रेम जागते
नफरत है अब राम कहानी
दिल में हैं    दीवार बनाते
         वे कुछ प्रेम उगा सकते थे
         पर आदम आदम एक कहाँ
कौन गिरा अब राहों में
अब कौन रहा है दौड़ यहाँ
दो बातें हो अव राहों पर
है इसकी फुर्सर किसे कहाँ
        मीठी    बातें    हो  सकती थीं  
        पर आदम आदम एक कहाँ

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

लो फिर चुनाव आए

सबने ताली बजाए

सबने चकचक सफ़ेद कपड़े पहने
सबने सबको नंगा किया
सबने सबके हमाम में झांका
सबने सबके फीगर बताए
सबने सबके पेट के हिसाब दिए
सबने सबके खुराक बताये

लो फिर चुनाव आए

सबने ताली बजाए



उसने इसके वादे चुराए
इसने उसके वादे चुराए 
सबने कहा, उनकी कापी राइट है
सबने सबको चोर बताए
सबने दूसर के बारे में सच बताए 
और सबके सच सामने आए  

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए


उसने मुह खोले 
अक्षर बौराए, शब्द लडखडाए
उसने हाथ फैलाए 
काटोरेवाले घबराए
उसने गुंडागर्दी ख़त्म किए
गुंडों को टिकट धराए

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए

साथी दल को धमकाए-
तू क्यों बवाली को बुलाए
क्यों भगवा लहराए
अपना अजेंडा गुजरात में रख
बिहार में जाति के परचम लहराए 
हरे हरे वोट पर क्यों आफत बुलाए
उसको बोलो न घबराए
सब देखेंगे चकराए
चुनाव बाद उसको फिर गले लगाए

लो फिर चुनाव आए 
सबने ताली बजाए 

नव गाँधी के चेलों ने कुरते चमकाए
देखोगे जादू जब बाबा आए 
पक्की सड़क से नीचे न जाए 
कच्ची सड़क की बात करे
मैडम आए चमत्कार हो जाए
बिना  हाथ डुलाए
हाथ पर वोट गिर जाए
अपना ख्वाब  सजाए
जनता को ख्वाब  दिखाए

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

आदमी ही था वो शायद कभी

गज़ल -खंड-२
आदमी ही था वो    शायद कभी
इश्क करता था वो शायद कभी

चेहरा उसका उदासी का दरिया
हंसता    भी था वो शायद कभी

अब ख्वाब ही उसका   डेरा बना
हकीकत  में था वो शायद कभी

सूखे  होंठ उसके   क्यों  कांपा करें
गज़ल कहता था वो शायद कभी

अपनी   जां     पर   वो जां  दे गया
मर  न   पायेगा    वो    शायद कभी
****************************************
इश्क इश्क इश्क और कुछ भी नहीं
दिल    देखता     है    ये    ऑंखें    नहीं

किसी और के लिए      तुम आओगे-जाओगे
जो इक बार दिल में आये तुम गए ही नहीं

दुनिया तो भूल जाती है अपनी ही दुनिया
मैं     तेरे       वजूद   में      कहीं     और नहीं


मिटते हैं वो अपने लिए खुदकुशी करते हैं
मरे    मुहब्बत में    वो    कभी मरते ही नहीं

आहें भरें   राह     ताकें   ये  आशिक    यहाँ
लिखूं गज़ल तेरे नाम और कुछ भी नहीं