मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

आपके हों इस साल पौ बारह

                                                        
                 



सलाम दोस्तों दो हजार ग्यारह/


आपके हों इस साल पौ बारह/


मुहब्बत से भरा हो घर औ' बाहर/
घोटाले हों जाएं नौ दो ग्यारह/


मुबारक हो दो हजार ग्यारह/
प्याज हो जाए किलो बारह/


चलो चलें दो हजार ग्यारह/
प्रेम के गीत गाएं ग्यारह/

इकट्ठे हों दोस्त दस बारह/
पकौड़े चलें चाय की चुस्कियां ग्यारह/


सुनहरी हो सुबह दो हजार ग्यारह/
चांदनी हो रातें दो हजार ग्यारह/


गंगा जमना साथ बहें दो हजार ग्यारह/
सलाम -प्रणाम दो हजार ग्यारह/








रविवार, 19 दिसंबर 2010

और पत्थर भी लहू-लुहान हो गया !


वह सड़क का ही एक पत्थर था
मंत्री जी का काफिला
उसे रौंदता हुआ निकल गया
चौक के सिपाही ने
मंत्री जी  को सलाम किया
और पत्थर को कोसा
और उसे अपने जूते से
सड़क के किनारे कर दिया
उसे डर था कि इस पत्थर के कारण
मंत्री जी को कार में हिचकोले लगने के आरोप में
कहीं उसे  नौकरी से न निकाल दिया जाए

कार  के काफिले से रौंदे जाने के कारण
बेचारा पत्थर ऐसा टूटा कि
नुकीला हो गया
फिर सडकों पर बलवाई उतरे
एक बलवाई ने उस पत्थर को हाथ में लिया
और दे मारा एक बेक़सूर के सिर पर
बेक़सूर हमेशा  कि तरह मर गया
और पत्थर भी लहू-लुहान हो गया
पत्थर बेचारा रो पड़ा

किसी जौहरी ने पत्थर को देखा
पत्थर के उदर में 
एक कीमती रत्न था
उसने उस पत्थर को अपनी झोली में डाला
फिर उसने पत्थर को तोड़  कर
उसके उदर से वह रत्न निकाला
उसे तरासा
रत्न में पत्थर की आत्मा थी
वह नग्न हो गई थी
उसे शर्म लग रही थी
लेकिन सभी उसे देखना
और पाना चाहते थे

पहले जौहरी के बेटों में
उस रत्न को ले कर फसाद हुआ
फिर शहर में उस रत्न को पाने के लिए
ख़ूनी खेल शुरू हुआ
धीरे-धीरे सारी दुनिया में
उस रत्न के लिए युद्ध शुरू हो गया

शापित लोगों ने उस रत्न को
शापित कहना शुरू कर दिया!

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मदद के हाथ जाल की तरह काम कर रहे थे !



उनका हर मोहरा
झूठ की बुनियाद पर खड़ा था
और आदमी
सच के साथ दबा कुचला था
जब कि
वह रंगरेलियां मना रहा था
और आदमी
सिर झुकाए खड़ा था

वह मनमानी कर रहा था
और  उसे  न्याय बता  रहा था
और आदमी
बेक़सूर हो कर भी
स्वयं को जेल में
बन्द कर रहा था

वह खुल कर
मदद कर रहा था
और उसके मदद के हाथ
जाल की तरह काम कर रहे थे
और आदमी चिड़िया बना
जाल में फंस रहा था.........  

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

और पत्थर पिघल गए

वे आंसू   घड़ियाली नहीं थे
वे दिल से बहे
और पलकों को चीर  
गालों से होते हुए
पत्थरों पर बिखर गए
और पत्थर पिघल गए-
ऐसे थे  
वे  नमकीन आंसू!
पर सवाल  हैं
कि आदमी क्यों नहीं पिघला?
कि नेता क्यों मौन रहे?
कि अधिकारी के अधिकार
 क्यों कुंद हो गए?
पंडित, मौलवी और पादरी
और अन्य संत
क्यों आकाश निहारते रह गए?
एक पक्षी जटायु  ने
रावण पर हमला कर दिया
एक क्रोंची ने
चिड़ीमार की करतूत पर 
आंसू बहाए  
और एक दस्यु 
कवि बन गया 
करुणा का शब्द सागर लहराया 
क्या यह सब इतिहास था
जो कभी दुहराया नहीं जाएगा?
क्या यह कहना गलत है
कि इतिहास 
इतिहास को दुहराता है?

शनिवार, 11 दिसंबर 2010

जो चोर चोर का कर रहा था शोर वह था असली चोर

जो चोर चोर का कर रहा था शोर
और कोई नहीं
वह था असली चोर
कितने पाप करोगे?
देश को तोड़ा
गाँधी को मारा
समाज को बांटा
मस्जिद गिराई
कारगिल में होता रहा घुसपैठ
तुम डूबे रहे
शराब की पाउच में
और  कितने सैनिक हो गए शहीद
लूट का शिकार हुई
शव पेटियों की खरीद
प्रतिरक्षा खरीद में ली
कैमरे के सामने दलाली
किसीने किये सौ धमाके
तुम्हारे पैदा किए उन्माद पर
तो तुमने भी कर दिए कुछ और धमाके
और छिप गए कायर की तरह
हाफ पैंट वाले बाबा की गोद में
प्रश्न के बदले लेते रहे मोटी रकम
और डूबे रहे प्रमोद में
आजादी का किया विरोध
और अब बनते हो राष्ट्रभक्त?
रंग बदलते हो देख कर वक्त
जिस दरख़्त के नीचे तुमको मिली पनाह
उसी दरख्त की जड़ें कुतरते रहे 
झूठ  दर झूठ बोलते रहे बेपनाह
अफवाह  पर अफवाह फैलाते रहे
लाशों पर राजनीति  करते रहे
और  संतों का भगवा पहन कर
उसे बदनाम करते रहे
आवाम को भी दिया धोखा
राम को भी दिया धोखा
कब तक यह सब करते रहोगे
कब तक?

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

नोट वोट का पर्याय है, सत्ता है टकसाल


कुछ दोहे
नोट वोट का पर्याय है, सत्ता है टकसाल
मनचाही कुर्सी मिले चार पुश्त हो   लाल

साधू को भी लूट लिया, चोरों को चकराय
सबकी  काटी जेब है, सिर पर टोप लगाय

लूट गया जो रात में, सुबह बोलता जाय
सारी दुनिया चोर है,    हम तो हैं रघुराय

नेता लेवे      सेवा,        पर सेवक कहलाय
सत्तर चूहे मारकर,       राम धाम को जाय

बोले सो वह       ना करे,    गंगा उलट बहाय
चोर चोर वह शोर कर, माल गड़प कर जाय

सुनने में झूठा लगे, फिर भी सच हो जाय
बैठा जेल के अंदर,       संसद में आ जाय 

वह सबका गीने दाग,      अपने में इतराय
शीश ना देखे आपणा, बस दर्पण चमकाय

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

सच बोलना गुनाह हो गया है, आम आदमी तबाह हो गया है

  *दिलीप तेतरवे             
 पुस्तक मेले में गुजरते हुए मुझको अहसास हुआ कि कविता और शायरी की पुस्तकें बोलने लगीं हैं और कवि- गोष्ठी कर रहीं हैं-आज के हालात  पर पेश है दुष्यंत कुमार की यह फड़कती हुई कविता-तुम/शासन की कुर्सी में बैठे हुए/अपने हाथों में मुझे/ एक ढेले की तरह लिए हुए हो/ और बर्र के छत्तों में फेंक कर मुझे/ मुसकुरा सकते हो/मौक़ा देख कर/ कभी/मेरी पहुंच से दूर जा सकते हो.....सचमुच राजनेता आम आदमी की पहुँच से कितनी-दूर,कितनी- दूर चला गया है...अब तो उस तक सिर्फ नीरा राडिया ही पहुँच बना सकती है....जो अमीरों की दलाली करती है, लेकिन क्या कोई गरीबों की दलाली कर सकता है क्या? नामुमकिन!
            अब आम लोग बेचारे क्या बोलेंगे...फैज़  अहमद फैज़ के कुछ सवाल ही सुन लीजिए- बोल, की लब आजाद हैं तेरे/ बोल, जबां अब तक तेरी है/तेरा सुतवां जिस्म है तेरा/ बोल की जान अब तक तेरी है....निदा फ़ाज़ली साहब तो और गजब ढाने के मूड में हैं, उनको लगता है की खुदा चुप है, इसलिए ही यहाँ बवाल हो रहे हैं- खुद है चुप आस्मां में/ लेकिन/ वो सांप-आदम को जिसके कारण/ खुदा ने जन्नत बदर किया था/ज़मी पे/ ताली बजा रहा है..यहाँ बताने की जरूरत नहीं की सांप-आदम कौन है..ग़ालिब ने आम आदमी की हालत पर बोल ही दिया-कर्ज की पीते हैं मै और समझते हैं कि हाँ/कि रंग लाएगी फाकामस्ती एक दिन.....नाचीज़ ने भी कह दिया-सच बोलना तो बस गुनाह हो गया है/आम आदमी बस काम करते-करते तबाह हो गया है....
          गजानन माधव मुक्ति  बोध की चिंता कालजयी हो रही है-नामंजूर/ उसको ज़िंदगी की शर्म की सी शर्त/नामंजूर/हठ इनकार का सिर तान/खुद/मुख्तार/कोई सोचता उस वक्त-छाए जा रहे हैं सल्तनत पर घने स्याह....बहुत सारे पहरेदार चोरी और हेराफेरी के धंधे में लग गए हैं. चौथा स्तम्भ भी कलंकित हो गया है. 
          बशीर बद्र ने और साफगोई से कह दिया-घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे/बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला....राजनीति में आदमी की तलाश एक असंभव सा काम हो गया है...एक आदमी था मनमोहन, लेकिन अकेला चना तो बेचारा ही होता है...जब पक्ष-विपक्ष के साथ  चौथे स्तम्भ के तीस लोग जुड़ जाएं तो फिर खुदा ही मालिक है, देश का...

रविवार, 5 दिसंबर 2010

कलम हो गई बदनाम/ ठेकेदारों की झंडू बाम !



बोल कलम तेरी कैसे जय बोलूँ ?
कलम पत्रकार की
स्याही ठेकेदार की
स्वार्थ की स्याही
काले धन की स्याही
काली करतूतों की स्याही
सूख  गई पत्रकारिता की स्याही
गिर गया चौथा स्तम्भ भी
बोल कलम तेरी कैसे जय बोलूँ ?

कर गया कोई मोल
तुम्हारी कलम का-
शब्द बिक गए
रपट गढ़ दी गयी
कलम हो गई गुलाम
ठेके की नगरी में
कलम  हो गई बदनाम
ठेकेदारों की झंडू बाम ! 

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

वह जिन्दगी नहीं है श्मशान है.....



जिन्दगी बहुत ही अजीब चीज है
बहुत हिसाब मांगती है
बहुत परीक्षा लेती है
बहुत रुलाती है
बहुत हंसाती है


जिन्दगी  वैसी सड़क जैसी होती है
जो चलने के काबिल नहीं होती
लेकिन मंजिल तक जाने के लिए
बस वही एक सड़क है
सबको उसी सड़क से
गुजरना पड़ता है
हंस के गुजरें या रो के गुजरें

जिन्दगी की सड़क  पर 
सिर्फ गड्ढे ही नहीं होते हैं
नुकीले पत्थर भी होते हैं
अगर जिन्दगी की सड़क पर चलना है
तो तलवो को खून से भीगने पर भी
अपने शरीर का  भार
ढोने लायक बनाना पड़ता है

लेकिन जो 
दूसरों  के तलवे चाटने में
विश्वास रखते हैं
वे बिना एड़ियां  घिसे 
बहुत कुछ पा लेते हैं
जिन्दगी को गुलामी के नाम कर


जिन्दगी एक दिन के लिए
अगर वह गुलाम है तो 
 वह जिन्दगी नहीं है
श्मशान है.............

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

सन्नाटे में दिल बहुत बोलता है


सन्नाटे में दिल बहुत बोलता है
खजाना  यादों का  यूँ  उमड़ता है


लगता है अभी-अभी वो मिले थे
पंख    लगा   के   ये  वक्त उड़ता है

उग आए कांटे जहाँ   फूल खिलते थे
फिर भी इक दीवाना वहां रहता है

इश्क    करता था    वो चांदनी से
अब पत्थरों को बावला चूमता है

मिटने का उसको कोई गम नहीं
नाचीज़  कब्र में भी  जी लेता है  

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

स्मृति के सारे दीप बुझा दो



कभी चुभे थे कांटे   मन में
अब भी  हर पल मुझे रूलाते
बीते दिन बन कर परछाई
मुझको बीती याद दिलाते

स्मृति के सारे दीप बुझा दो
मेरी अब पहचान मिटा दो

 बहते  आँसु    बहा  न  पाते
मेरी   आँखों     की   तस्वीरें
बन कर पत्थर की प्रतिमाएं
अब मेरी    पलकों   को  चीरें

आखों के अब द्वीप बुझा दो
मेरे   सारे  रंग     बहा      दो

बादल था मैं चाँद चूमता
तारों से अठखेली   करता
बरस धरा पर अब मैं रोता
लम्बी-लम्बी     साँसें   भरता

मेरा जीवन द्वीप बुझा दो
पूरा ही अस्तित्व मिटा दो



रविवार, 28 नवंबर 2010

जो टूटे नहीं वो नींद मुझको सुला जाइएगा



मेरे     दिल-ए-नाचीज    को भुला     जाइएगा
साथ गुजरे वो दिन वो रातें भुला जाइएगा

आहें   मेरी ये दर्द  मेरा यार  पिघलेगा कब
मेरे ख्वाबों   में आ के    मुझे रुला जाइएगा

मेरी     आँखों     से     तस्वीरें     मिटती    नहीं
जो टूटे नहीं वो नींद मुझको सुला जाइएगा

खिलखिलाती  हंसी वो खनकती आपकी चूड़ियाँ 
तितली-सी  उड़ती यांदों   को  जुदा कर जाइएगा

छोड़ के जा रहा हूँ मैं खुशनुमा चमन आपका
मेरी कब्र पर    एक    दिया तो जला जाइएगा

कभी भूले से याद   आए ये      नाचीज आपको
पहले पहले प्यार की गज़ल गुनगुना जाइएगा

शनिवार, 27 नवंबर 2010

अगर तलवारें निकली न होतीं म्यान से



चलती   रहती   ये    दुनिया बड़ी ईमान से
अगर तलवारें निकली न होतीं म्यान से

शरहदें   खून   से    तलवारों    ने    क्या    बनाईं 
आदमी शरहदों के दोनोंओर हुए अनजान से

इतिहास लिखने लगीं तलवारें लाशों पर
कलम    अक्षर   आदमी    हुए    बेजान   से

तमाशबीन या   आदमी   बन   गया तमाशा
हिल  गयी दुनिया तलवारों के फरमान से

जड़ दिए ताले तलवारों ने आदमी की जुबां पे
दुबक    गए    लोग   अँधेरी   गुफा में   बेजान से



कौन उड़ा ले गया कल्लू की मुर्गी

उसका दुपट्टा किसने चुराया
उसकी हंसी कौन ले गया
उसकी चींख कौन पी गया
उसके दिल को कौन रौंद गया
उसको कौन जिस्म बना गया 
सबने देखा किसीने न बताया

किसने चुराया माँ की लाडली को
किसने बेबसी पर पौरुष फहराया
किसने उसके बदन पर चींटियाँ दौरायीं
किसने रोशनी में
उसे अँधेरे का जाम पिलाया
किसने उसे बाजार का रास्ता दिखाया
सबने देखा पर किसीने न बताया

आसमान से सूरज किसने चुराया
रोशनी में बैठकर
अँधेरे का परचम किसने लहराया
कौन उड़ा ले गया कल्लू की मुर्गी
किसने छौंक  लगाई किसने पुलाव बनाया
सबने देखा किसीने न बताया

कौन पी गया नदी का सारा पानी
कौन निगल गया पहाड़
कौन उड़ा ले गया बादल
कौन चुरा ले गया चिड़ियों के बोल
सबने देखा पर किसीने न बताया

कौन चट कर गया बासमती
कौन मार गया मलाई
कौन पी गया उसकी  हंसी  
कौन निगल गया मासूम का सपना
कौन झोपड़ी में आग डाल गया
कौन उस अछूत को छू गया
सबने देखा पर किसीने न बताया  





शुक्रवार, 26 नवंबर 2010


उसकी जां से     किसने    जां छीन ली
फूलों से      किसने    महक    छीन    ली

यहाँ जो गाते थे कितना गुनगुनाते थे
उन परिंदों  से किसने जुबाँ    छीन   ली

किसने      बांधा     इस    दरिया को यहाँ
बहते पानी से किसने जिंदगी छीन ली

ये    चाँद     कैसे    बेनूर   हो   गया
हसीनों से किसने   हंसी छीन ली

झर    गए  कैसे    तितलियों   के   रंग
मुहब्बत से किसने गज़ल छीन ली

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कलियों का मोल करे चंद लोग सौदागर


दुनिया बाजार बनी चंद लोग सौदागर
बेबसी के पेड़    उगे चंद   लोग सौदागर

दिलों   का   बाजार   सज   गया   है यहाँ
दिल का मोल करें चंद लोग सौदागर

अम्मा के आँगन से गुड़िया भी ले गए
कलियों का मोल करे चंद लोग सौदागर

जिसको दिन में अछूत बोलते रहे हैं
रात में पान बनाते चंद लोग सौदागर

बुधवार, 24 नवंबर 2010

वो चाँद मेरा रोता होगा कहीं



वो चाँद मेरा  रोता  होगा कहीं
दुपट्टे में   मुंह   छिपाए  तो नहीं   

काटे न कटी  होगी रात उसकी 
आहटों  पर वो  चौकी होगी कहीं

इन   पहाड़ों से   पूछा    होगा उसने
इस बाबले बादल का पता तो नहीं

उसने लिखी होगी भीगी-सी चिट्ठी
बना के अश्कों   की स्याही तो नहीं

वो     आयेंगें यहाँ मैं रहूँगा नहीं
इश्क से इश्क अब मिलेंगे नहीं





मंगलवार, 23 नवंबर 2010

तुम्हारी जुबान से मैं अपने गीत गाऊँगा

जब मैं नहीं रहूँगा
देखूंगा तुमको
चाँद की नजर से
नगमे सुनाऊँगा
भौंरे-सा गंगुनाऊँगा
बन के ख्यालों में
उड़ता-उड़ता आऊंगा.....
जब मैं नहीं रहूँगा
फूलों की गंध बन कर
तेरे दिल में भर जाऊँगा......
सुबह-शाम
मेरे होने का अहसास 
तुममें  जगाऊँगा
तब छेड़ोगे तुम
अपने दिल के तारों को
तुम्हारी जुबान से
मैं अपने गीत गाऊँगा.........

सोमवार, 22 नवंबर 2010

अगर कुछ नहीं बुन सकते तो सपने बुनो

अगर कुछ नहीं बुन सकते 
तो सपने बुनो
आकाश में महल  बनाने का
आकाश में पेड़ उगाने का
आकाश में अपनी दुनिया बसाने का
सपने बुनो
सुंदर सुन्दर सपने बुनो
उन्हीं सपनों से एक दिन
जन्म लेंगें
साकार सपने/साकार प्राण
साकार प्रेम/साकार शून्य
स्मृति में रहे यह बात-
जिसमें कुछ नहीं होता
उसमे बहुत कुछ होता है
हमने तो शून्य में भी
लिखे हैं इतिहास
रचे हैं प्राण
स्थापित किया है गणित
अंक का
और जीवन का भी
इस लिए कहता हूँ
अगर कुछ नहीं बुन सकते
तो सपने बुनो!

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

पर आदम आदम एक कहाँ

अपना सपना उनका   सपना
सबके सपने अलग-अलग हैं
सबकी     मंजिल   एक   मगर
राहें सबकी   अलग-अलग   हैं
        सब मिलजुल कर चल सकते थे
        पर आदम    आदम     एक     कहाँ
ढूंढ़     रहे    थे सब दुश्मन  को
हथियारों     से       लैस       खड़े
हर का दुश्मन आदम निकला
सब      खून     बहाते    अड़े-खड़े
        खून   खराबा रुक सकता था
             पर आदम आदम एक कहाँ
दिखती दुनिया अब अबला सी
आसमान     सहमा -  सहमा-सा
रोज      धमाके     गूंजा      करते
आया   है    मौसम     मरघट सा
        मौसम बदला जा सकता था
        पर आदम   आदम एक कहाँ
वे घर की    दीवार बनाते
छत के नीचे प्रेम जागते
नफरत है अब राम कहानी
दिल में हैं    दीवार बनाते
         वे कुछ प्रेम उगा सकते थे
         पर आदम आदम एक कहाँ
कौन गिरा अब राहों में
अब कौन रहा है दौड़ यहाँ
दो बातें हो अव राहों पर
है इसकी फुर्सर किसे कहाँ
        मीठी    बातें    हो  सकती थीं  
        पर आदम आदम एक कहाँ

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

लो फिर चुनाव आए

सबने ताली बजाए

सबने चकचक सफ़ेद कपड़े पहने
सबने सबको नंगा किया
सबने सबके हमाम में झांका
सबने सबके फीगर बताए
सबने सबके पेट के हिसाब दिए
सबने सबके खुराक बताये

लो फिर चुनाव आए

सबने ताली बजाए



उसने इसके वादे चुराए
इसने उसके वादे चुराए 
सबने कहा, उनकी कापी राइट है
सबने सबको चोर बताए
सबने दूसर के बारे में सच बताए 
और सबके सच सामने आए  

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए


उसने मुह खोले 
अक्षर बौराए, शब्द लडखडाए
उसने हाथ फैलाए 
काटोरेवाले घबराए
उसने गुंडागर्दी ख़त्म किए
गुंडों को टिकट धराए

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए

साथी दल को धमकाए-
तू क्यों बवाली को बुलाए
क्यों भगवा लहराए
अपना अजेंडा गुजरात में रख
बिहार में जाति के परचम लहराए 
हरे हरे वोट पर क्यों आफत बुलाए
उसको बोलो न घबराए
सब देखेंगे चकराए
चुनाव बाद उसको फिर गले लगाए

लो फिर चुनाव आए 
सबने ताली बजाए 

नव गाँधी के चेलों ने कुरते चमकाए
देखोगे जादू जब बाबा आए 
पक्की सड़क से नीचे न जाए 
कच्ची सड़क की बात करे
मैडम आए चमत्कार हो जाए
बिना  हाथ डुलाए
हाथ पर वोट गिर जाए
अपना ख्वाब  सजाए
जनता को ख्वाब  दिखाए

लो फिर चुनाव आए
सबने ताली बजाए

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

आदमी ही था वो शायद कभी

गज़ल -खंड-२
आदमी ही था वो    शायद कभी
इश्क करता था वो शायद कभी

चेहरा उसका उदासी का दरिया
हंसता    भी था वो शायद कभी

अब ख्वाब ही उसका   डेरा बना
हकीकत  में था वो शायद कभी

सूखे  होंठ उसके   क्यों  कांपा करें
गज़ल कहता था वो शायद कभी

अपनी   जां     पर   वो जां  दे गया
मर  न   पायेगा    वो    शायद कभी
****************************************
इश्क इश्क इश्क और कुछ भी नहीं
दिल    देखता     है    ये    ऑंखें    नहीं

किसी और के लिए      तुम आओगे-जाओगे
जो इक बार दिल में आये तुम गए ही नहीं

दुनिया तो भूल जाती है अपनी ही दुनिया
मैं     तेरे       वजूद   में      कहीं     और नहीं


मिटते हैं वो अपने लिए खुदकुशी करते हैं
मरे    मुहब्बत में    वो    कभी मरते ही नहीं

आहें भरें   राह     ताकें   ये  आशिक    यहाँ
लिखूं गज़ल तेरे नाम और कुछ भी नहीं

रविवार, 26 सितंबर 2010

उनकी आवाज ही आवाज है

उनकी आवाज ही आवाज है
और सबकी आवाज पर ताला है

वो हिन्दू के ठेकेदार हैं
वो मुसलमान के पैरोकार हैं
वो जात के मुखिया हैं
वो क्षेत्र के पहरेदार हैं......
लेकिन  हकीकात में
वो और वो
सिर्फ अपने लिए हैं.....

नारों की  बन्दूक लिए
वो खतरनाक शिकारी हैं
उनका पहला  शिकार-
कुर्सियां
दूसरा  शिकार-
जनता का खजाना
तीसरा शिकार-
आम आदमी
और
अगले शिकार की बात 
खुले में कुछ कहना
ठीक नहीं!
क्योंकि ऐसा करने से
शिकार फिर से शिकार हो जाता है!

वो शिकारी  बड़ा मददगार है-
मदद के बदले में
मदद लेने वालों को
लूटता  है
रौंदता है
मसलता कुचलता है
उसका हाथ नहीं जाल है!

वो बात जितनी सुन्दर करता है
उतनी ही असुंदर
वो काम  करता है

उसकी मुखाकृति
उसकी संस्कृति
दोनों ही
पूरे देश को 
धोखा दे रही  हैं !

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे


मेरी इस कविता के बाद
आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
क्योंकि
हमारी आदत है
तालियाँ बजाने की
हीरो के भोंडे एक्शन पर
हीरोइन की कातिल अदाओं पर
तेंदुलकर के लखपती छक्कों पर
या तब
जब सडक पर
किसी लड़की की स्कूटी 
बार-बार किक मारने पर भी
स्टार्ट नहीं होती 


मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
क्योंकि मेरी कविता में
वह भूख तालियाँ बजाती है
जो भूख
कपड़े उतरवाती है
कपड़े पहनवाती है
भूखे को
फाइव स्टार होटल ले जाती है
और उसे भोजन की तरह परोसती है
अंग अंग परोसती है
और अहले सुभाह
उसे डस्टबीन में छोड़ जाती है
इस लिए मेरे दोस्त
मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे



फिर भी आप और हम तालियाँ बजाते हैं
नेताओं के भोंडे भाषणों पर
कभी उनके छिछले मजाकों पर
कभी पैसे ले कर
तो कभी
नेता के इशारों पर
हमारी सारी तालियों की आवाज
खो जाती  है हवा में  
और चुनाव के बाद तो
नेताजी भी हवा हो जाते हैं
और हम हाथ मलते रह जाते हैं
और नेता सत्ता की शराब की बोतलें
कभी यहाँ
कभी वहां
खोलता रहता है
और हम पीने के पानी के लिए
लाइन लगाते हैं


मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
यह कवीता
तालियों के ब्यापार से अपने को
दूर रखना चाहती है
क्या आप भी
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बुधवार, 22 सितंबर 2010

आजादी की अमर कहानी

अंग्रेजों       का         शासन   था
वे      करते      थे        मनमानी
शोषण   का  बाजार   गरम  था
व्यापारी      थे        क्रूर ब्रितानी
नित दिन कर का बोझ-बढाते
बड़े निरंकुश थे     अभिमानी


अट्ठारह सौ सत्तावन की
बात नहीं है बहुत पुरानी
सेना में विद्रोह मचा था
कंपित थे कप्तान ब्रितानी
खौल रहे थे विद्रोही सैनिक
गूंजित करते क्रांति वाणी

देख ब्रितानी तानाशाही
बोल उठे सब हिन्दुस्तानी
'अपनी तलवारें  चमकेंगी
हम सब देंगे अब कुर्बानी
किसान मजदूर साथ चलेंगे
हिल जाएगा राज ब्रितानी


गरज उठी थी लक्ष्मीबाई-
'सुन लो गोरे अभिमानी
ज्वाला बन कर मैं आई हूं
देख मेरी तलवार का पानी
हर दिल में भर दूंगी मैं
मर-मिटने की जोश-जवानी'


दिल्ली में तलवार उठा ली
बना शाह-जफ़र सेनानी
तात्याटोपे ने ललकारा-
देश की खातिर कर कुर्बानी
अहमदुल्ला और बख्तखान
बोल रहे थे- जागो हिन्दुस्तानी


बिहार के वीर कुंवर सिहं की
नभ को कंपित करती वाणी-
हाथों  में हथियार उठा लो
ऐसी चाल चलो तूफ़ानी
इन जालिम अंगेजो की
बचे न कोई यहां निशानी


गवर्नर जनरल डलहौजी ने
विद्रोह कुचलने की ठानी
उसकी पशुता नाच उठी थी
लहू बहाया जैसे पानी
छ्लछ्द्म का लिया सहारा
बौराई सेना ब्रितानी


सैकड़ों सैनिकों से घिरी
बोल उठी झांसी की रानी-
'मैं लहू से लिखूंगी पाती
उसे पढेंगे सब हिन्दुस्तानी
मां अपनी यह धरती होगी
बस आजादी की दीवानी'




अजादी की भेंट चढ गई
वीरांगना झांसी की रानी
बढती गोरों की बर्बरता
लगी दबाने क्रांति-वाणी
हंसते-हंसते झूल गए
फ़ांसी पर कितने बलिदानी




कुंवर सिंह भी हुए बलिदान
दे कर एक संदेश जुबानी-
'बंदी है अपनी भारत मां
है बेडियां तुमको चटकानी
तुम लिख दो अपने खून से -
खत्म करेंगे राज ब्रितानी'


बंदीग्रह में शाह जफ़र की
बेड़ियों से गूंजी वाणी-
'जान से प्यारा वतन हमारा
तुमसे मांग रहा कुर्बानी
इस माटी को चूम कसम लो-
यह गुलामी तुमको मिटानी


गले लगा कर फ़ंदे को
तात्या बोले-जय भवानी
जय जय भारत भारती मां
भर दे हर दिल जोश जवानी
हर चिनगारी दे कुर्बानी
बन आजादी की दीवानी


सन अट्ठारह सौ पचासी में
बन गई कांग्रेस जनवाणी
राष्ट्रीय आंदोलन की
बही पुरजोर हवा दीवानी
डब्ल्यू सी बनर्जी बोले
बढा कदम तू हिन्दुस्तानी


सन अट्ठारह सौ अट्ठानवे
कहर ढा रहे थे ब्रितानी
बड़ा ही क्रूर अन्यायी था
वायसराय कर्जन अभिमानी
राष्ट्रीय क्रांति को उसने
सख्ती से कुचलने की  ठानी

आकाश में जैसे चमके बिजली
गूंज उठी तिलक की वाणी
'आजाद कलम से लिखूंगा
जान ले अब राज ब्रितानी
गोरो ने भेजा उनको जेल
चमकी और तिलक की वाणी


गणपति उत्सव लगे मनाने 
देश में आई नई जवानी
शिवाजी उत्सव  की धूम मची
राष्ट्रीयता का उफ़ना पानी
'आजादी-जन्म सिद्ध अधिकार'
कंपित करती तिलक की वाणी-

'दमन बस दमन ही होता है
विरोध करेगी उसे जवानी
अंधा हो जो कानून अगर
उसकी कर दें अंत कहानी
वह पथ ही न्याय भरा होता
जिस पथ पर जाते बलिदानी'


फ़ूट डालो और राज करो
नीति लेकर चले ब्रितानी
धार्मिक विदूष लगे जगाने
खारा हुआ एकता का पानी
बनवा कर मुस्लिम लीग
गोरे चले चाल शैतानी


शोषक-सत्ता का चाबुक ले
गोरों ने फ़िर की शैतानी
जन सभा पर पाबंदी के
कानून बनाए ब्रितानी
भाषण पर भी रोक लगायी
गला घोंटता राज ब्रितानी


बंकिम गांए-बंदे मातरम
स्वर मिलाती देश की वाणी
आजादी का मंत्र बना यह
गाते थे सब बलिदानी
लगा इस गान पर पाबंदी
बौराए गोरे अभिमानी

सन उन्नीस सौ पंद्रह में
मानो अदभुत घटी कहानी
अफ़्रीका से भारत आकर
गांधी बने संत सेनानी
अहिंसा से लगे झुकाने
हिंसा का राज ब्रितानी
गांधी के सत्यग्रह पर थे
हंसते शासक ब्रितानी


पर सत्याग्रह की ताकत को
जल्दी ही सब ने पहचानी
था देश उमड़ता सागर-सा
सुन कर सत्यग्राह की वाणी


गोरों की बन्दूक तनी थी
गांधी की सत्य भरी वाणी
गोली गूंज कर चुप हो जाती
आकाश कपाते बलिदानी
देश गाता-वंदे मातरम
कदम बढाते स्वाभिमानी


लाया उन्नी सौ उन्नीस में
रौलेट एक्ट राज ब्रितानी
बिन सुनवाई के न्यायालय
लगा सजा सुनाने मममानी
काली नीति का हुआ विरोध
गरज उठा सागर का पानी


जन अभाओं पर लाठी बरसी
सैकड़ो गए कालापानी
तीस हजार लोगों ने थी
भर डाली जेल ब्रितानी
क्रोधित जनरल डायर के
ह्रदय में जागी शैतानी
जलियावाला बाग सभा में
डायर की करनी हैवानी
बच्चे-बूढों पर गोली दागी
हर आखों में छलका पानी
मारे गए हजार निहत्थे
उबल उठे सब हिन्दुस्तानी


युवा उधम सिंह ने ली शपथ
डायर को है सबक सिखानी
मेरे जीवन का होगा
यही सपना यही कहानी
लन्दन जा कर डायर को मारा
पूरी कर दी अपनी वाणी


सन उन्नीस सौ सत्ताइस में
उभरी  युवा शक्ति तूफानी
नेहरू, सुभाष, जयप्रकाश
उनकी न थी कोई सानी
उनके स्वर में स्वर मिलाते
उत्साही  युवा  हिन्दुस्तानी


क्रांतिकारी संगठन भी बने
भगत सिंह की गूजी वाणी
अपने खून से लिखेंगे हम
आजादी की एक कहानी
थर्राएंगे अंगेरेजों को
बन्दूकों से हम सेनानी


रामप्रसाद बिस्मिल बोले
कफ़न ओढ़ चलें हिन्दुस्तानी 
बम-बारूद के विस्फ़ोटों से
क्रांति की है आग जलानी
धू-धू कर के जल जाए यह
अत्याचारी राज ब्रितानी


बिस्मिल,असफ़ाकउल्ला ने
चढ फ़ांसी दे दी कुर्बानी
भगत राजगुरू,सुखदेव ने भी
चूमा फ़ंदा, बने बलिदानी
अंतिम सांस तक आजाद ने
थर्रा के रखा राज ब्रितानी


जेल में जतिन  थे अनशन पर
हो रही थी जनता दीवानी
'वंदे मातरम' का तुमुल नाद
तंरगित था गंगा का पानी
अनशन के चौसंठवें दिन
'जय-हिन्द' कह गया सेनानी


सन उन्नीस सौ अट्ठाईस में
फिर दुहराई चाल पुरानी
साइमन कमीशन था आया
मन में लिए बेईमानी
गांधी बोले-अब बहलाना
बंद करो,शासक ब्रितानी


'साइमन वापस जाओ' का
 लगाते नारा हिन्दुस्तानी
जत्थे में निकले सड़कों पर
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हर एक जत्था था तूफ़ानी
'पहनेगें नहीं विदेशी वस्त्र'
गूंज उठी स्वदेशी वाणी


लाजपत राय के संग निकले
झंडा लहराते बलिदानी
सांडर्स ने लाठी चलवाई
इंकलाब की गूंजी वाणी
लाजपत राय हुए घायल
कराह उठे सब हिन्दुस्तानी


सन उन्नीस सौ तीस में
सत्य, अहिंसा की वाणी
गांधी बोले-तोड़ेंगे हम
यह नमक कानून ब्रितानी
वह कोई कानून नहीं था
बस शोषण की एक कहानी


दांडी यात्रा की गांधी ने
तोड़ कर कानून ब्रितानी
अपने हाथों नमक बनाया
धरा गगन में कंपित वाणी
अपना विधान होगा प्रिय
जैसे यह गंगा का पानी


सन उन्नीस सौ बयालीस में
जनता हो उठी दीवानी
आजादी हम ले के रहेंगे
जिन्दगी क्यों न पड़े गंवानी
शोषण की सीमा लांघ गए
मुट्ठीभर ये क्रूर ब्रितानी


गांधी ने दिया पैगाम-
पूरी आजादी है लेनी
तो 'करो या मरो' की नीति
कफ़न बांध होगी अपनानी
बौखला उठे सब गोरे
सुन कर आजादी की वाणी


चली सत्याग्रहियों पर लाठी
जुलूसों पर बंदूकें तानी
नेताओ के  संग जेल गए
हजारों हजार जीवनदानी
घोषणा कर दी कांग्रेस ने
'छोड़ो भारत' अब ब्रितानी


सन उन्नीस सौ तैंतालीस में
गरजे नेताजी सेनानी-
देश के बंदे खून मुझे दो
खत्म करूंगा राज ब्रितानी
खाएंगे सीने पर गोली
हम आजादी के सेनानी'


सन उन्नीस सौ सैंतालीस में
ढल रहा था जब राज ब्रितानी
धर्म-द्वंद्व को और बढाया
दगें उनकी थी कारस्तानी
देश बांटने की चाल चली
लिखी करुणा भरी कहानी


गांधी की जय बोल रहा था
देश का हर स्वाभिमानी
गोरे भी अब समझ गए थे
नहीं टिकेगा राज ब्रितानी
समझौते की राह पर आए
फ़िर भी जारी रही शैतानी


पंद्रह अगस्त सैंतालीस को
देश बांट गए ब्रितानी
तिरंगा लाल किले पर लहरा
गूंजी नेहरु की वाणी
शतनमन करता है देश

जिसने दी प्राणों की  कुर्बानी
सब नाम-अनाम शहीदों को
याद रखेंगे हिन्दुस्तानी
जल कर ज्वाला में तुमने
जीवन की दे दी बलिदानी
अपने खून से लिखा तुमने
आजादी की अमर कहानी
याद रखेंगे हम हिन्दुस्तानी
आजादी का पाठ जुबानी