रविवार, 19 दिसंबर 2010

और पत्थर भी लहू-लुहान हो गया !


वह सड़क का ही एक पत्थर था
मंत्री जी का काफिला
उसे रौंदता हुआ निकल गया
चौक के सिपाही ने
मंत्री जी  को सलाम किया
और पत्थर को कोसा
और उसे अपने जूते से
सड़क के किनारे कर दिया
उसे डर था कि इस पत्थर के कारण
मंत्री जी को कार में हिचकोले लगने के आरोप में
कहीं उसे  नौकरी से न निकाल दिया जाए

कार  के काफिले से रौंदे जाने के कारण
बेचारा पत्थर ऐसा टूटा कि
नुकीला हो गया
फिर सडकों पर बलवाई उतरे
एक बलवाई ने उस पत्थर को हाथ में लिया
और दे मारा एक बेक़सूर के सिर पर
बेक़सूर हमेशा  कि तरह मर गया
और पत्थर भी लहू-लुहान हो गया
पत्थर बेचारा रो पड़ा

किसी जौहरी ने पत्थर को देखा
पत्थर के उदर में 
एक कीमती रत्न था
उसने उस पत्थर को अपनी झोली में डाला
फिर उसने पत्थर को तोड़  कर
उसके उदर से वह रत्न निकाला
उसे तरासा
रत्न में पत्थर की आत्मा थी
वह नग्न हो गई थी
उसे शर्म लग रही थी
लेकिन सभी उसे देखना
और पाना चाहते थे

पहले जौहरी के बेटों में
उस रत्न को ले कर फसाद हुआ
फिर शहर में उस रत्न को पाने के लिए
ख़ूनी खेल शुरू हुआ
धीरे-धीरे सारी दुनिया में
उस रत्न के लिए युद्ध शुरू हो गया

शापित लोगों ने उस रत्न को
शापित कहना शुरू कर दिया!

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