रविवार, 22 मई 2011

मसाईल





जमीं की मसाईल आसमां  पे क्यों छोड़ें
सारी बातें यहाँ की जमीं पर किया करें 
खुदा खुदा करते क्यों काटें दिन रात 
कुछ पसीना  इस जमीं पे हम भी गिराया करें  

शनिवार, 14 मई 2011

वह

वह उनके बच्चों को
बस स्टाप तक पहुंचाती
सजा सवांर के
नाश्ता करा के
स्वयं भूखे पेट
किताबों का थैला ढोती
स्वयं किताबों से दूर
बचपन से दूर
परिवार की रोटी हो गयी
दिन भर एसी लगे घर में
काम करती
खटती
मरती
थकती
और रात में
पसीने से तरबतर
अपनी झोंपड़ी में
ढेर हो जाती
और आज और आज
उसकी झोपड़ी भी
बुलडोज़र के नीचे आ गयी
और और
आज की रात
बहुत भयावह होगी
कोई सरकार
कोई न्यायलय
कोई पहरेदार
उसके बचपन को
तार तार होने से बचा नहीं पायेगा
वह सब्जी बन जाएगी.......

 

सोमवार, 9 मई 2011




कहाँ खिलते हैं कमल
यह देखना हम भूल गए
जूही चंपा चमेली  हम भूल गए
चाँद सूरज तारे को भी  भूल गए
भूल गए हम दूध दही माखन
भूल गए हम अपने मन के उपवन
गढ़ रहे हम अब नए रंग के  गीत रीत
भूल गए हम बचपन के मीत
जिस आँगन में पनपा जीवन
भूल गए हम वह आँगन
भूल  गए हम तो तुलसी चन्दन
भूल  गए हम अपनों का अभिनन्दन
याद न आता अपना गाँव 
अनजान डगर पर चल पड़े पाँव 
नक़ल करता अपना यह  जीवन
विकल्पों में जीता अपना यह  जीवन
कहाँ गए संवेदना के स्पंदन
भूल गए  करना हम  माटी का वंदन


  




पहले उनसे कुछ कुछ डरता था
कुछ सहमा सहमा रहता था
पर घुलने मिलने का उनसे 
मेरा मन भी करता था
कभी माँ के माध्यम से
बातें उनसे  करता था 
पर मन  मेरा नहीं भरता था
कुछ बड़ा हुआ तो 
लगा मैं उनको पढने 
और उन्हें समझने
वे तो बड़े सहज थे
मैं ही मूरख उनसे डरता था
और धीरे धीरे
रंग में उनके मैं रंग गया
उनकी बातों में रम गया
माँ भी लगी थी कुछ कुछ जलने
लगी थी मुझको कहने--
"बाप का बेटा
बे पेंदी का लोटा"
और फिर वह हंसती
और मेरे गाल पर
प्यार की चपत लगाती
और वे कहते--
"बेटा तो हरदम  करता है
रोशन माँ का नाम
और इस निखट्टू के लिए
क्यों करती हो
मुझको बदनाम."
बड़ी ही मीठी यादें
जो अब भी मुझको
ले जाती हैं बचपन में
सहा सुलभ बपन में......


रविवार, 8 मई 2011





निर्मल निश्छल कोमल मधुरिम
वन्दे मातरम् वन्दे मातरम
तू चन्दन  तू स्नेह-स्पंदन
हम तेरे नंदन 
तेरे ह्रदय की धड़कन 
तेरे सपने हम साकार 
मेरे संग तू अब निराकार 
ममता की तू गंगा 
त्याग  की तू  पर्वतमाला
स्वर्ग तुम्हारे आचल
तू श्रृष्टि है तू बादल  
निर्मल निश्छल कोमल मधुरिम

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम
हर राग में तू मनभावन
सब धामों में तू पावन
तू मोती तू कंचन
तू भयहरण 
जाऊं मैं हर दिन 
तेरी चरण-शरण  
निर्मल निश्छल कोमल मधुरिम

वन्दे मातरम् वन्दे मातरम




मेरी हर सांस तुम्हारी
मेरी हर शरारत तुमको प्यारी
मेरी गलती अपने सर










  

शनिवार, 7 मई 2011





वह मेरी एक और माँ थी
मुझे फुटपाथ पर
बेहोश मिली थी
जब मैंने उसके सर को
अपनी बाँहों में उठाया
तो देखा
उसकी बाँहों के चमड़े
फुटपाथ पर चिपके हैं
मैंने उसे पानी पिलाया
होश में लाया
अस्पताल ले गया
'दो चार दिन की मेहमान है'
डाक्टर ने बताया
उसे घर लाया
उसके बालों  में कंघी  की
उसे नहलाया 
उसकी पसंद की चीजें
उसे अपने हाथों
खिलाया
और और और
वह उसके जीवन का
दिन था अंतिम 
उसने मुझे बताई

अपनी कहानी
चार अमीर बच्चों  की
थी वह माँ
और और और
जब  खिला रहा था मैं उसे
खीर के कौर
उसने मेरा माथा चूमा
मुस्कुराई
और और और
मेरी बाँहों में
सो गयी सदा के लिए
और और और
मैंने  आज भी 
उस  मुस्कान को
अपने ह्रदय में
रखा है सजाए  
दुनिया की सबसे कीमती मुस्कान
एक माँ की मुस्कान ! 

   

शुक्रवार, 6 मई 2011




तू ही अमृत
तू ही आचल
तू ही छाया स्नेह की
तू ही ममता
तू ही संवेदना
तू ही काया सेवा की
तू ही वृक्ष
तू ही नदी
तू ही झरना प्रेम की
तू ही अर्चना
तू ही पूजा
तू ही अग्नि  यज्ञ   की 
तू ही राग 
तू ही गीत 
तू ही ज्योति जीवन की  

गुरुवार, 5 मई 2011

अनशन पर





बाबूलाल अनशन पर
अर्जुन बैठे बुलडोज़र पर
गरीब का घर
हुआ खंडहर
झारखण्ड  में
मचा बवंडर
सुगिया आ गयी
सड़क पर
मुन्नी के स्कूल बैग पर
चढ़ गया बुलडोज़र
अर्जुन हुए सवार
नए अध्यादेश पर
अपना कार्यालय भवन
अपने अमीरों के भवन
बचाने को तत्पर
नव युग का अर्जुन देखो
देखो नूतन मंजर
ह्रदय बंजर
संवेदना का कब्र
बाबूलाल अनशन पर
अर्जुन बैठे बुलडोज़र पर



 



बुधवार, 4 मई 2011

पल पल




पल पल
जीवन घुलता जाए
पल पल
समय बदलता जाए
बादल आए
बिन बरसे जाए
सपनें टूटें पल पल
अपनें छूटें पल पल
सासें तड़प रही हैं
आहें बरस रही हैं
मन का मौसम
बदले पल पल
कभी अँधेरा
कभी उजाला
सब कुछ
बदले पल पल
दिल के सारे अरमान जले
जले न घर के दीपक
पल पल
दहशत घेरे
विषधर फुफकारे
कुछ समझ न आए
पल पल
जीवन घुलता जाए
पल पल
समय बदलता जाए