रविवार, 26 सितंबर 2010

उनकी आवाज ही आवाज है

उनकी आवाज ही आवाज है
और सबकी आवाज पर ताला है

वो हिन्दू के ठेकेदार हैं
वो मुसलमान के पैरोकार हैं
वो जात के मुखिया हैं
वो क्षेत्र के पहरेदार हैं......
लेकिन  हकीकात में
वो और वो
सिर्फ अपने लिए हैं.....

नारों की  बन्दूक लिए
वो खतरनाक शिकारी हैं
उनका पहला  शिकार-
कुर्सियां
दूसरा  शिकार-
जनता का खजाना
तीसरा शिकार-
आम आदमी
और
अगले शिकार की बात 
खुले में कुछ कहना
ठीक नहीं!
क्योंकि ऐसा करने से
शिकार फिर से शिकार हो जाता है!

वो शिकारी  बड़ा मददगार है-
मदद के बदले में
मदद लेने वालों को
लूटता  है
रौंदता है
मसलता कुचलता है
उसका हाथ नहीं जाल है!

वो बात जितनी सुन्दर करता है
उतनी ही असुंदर
वो काम  करता है

उसकी मुखाकृति
उसकी संस्कृति
दोनों ही
पूरे देश को 
धोखा दे रही  हैं !

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे


मेरी इस कविता के बाद
आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
क्योंकि
हमारी आदत है
तालियाँ बजाने की
हीरो के भोंडे एक्शन पर
हीरोइन की कातिल अदाओं पर
तेंदुलकर के लखपती छक्कों पर
या तब
जब सडक पर
किसी लड़की की स्कूटी 
बार-बार किक मारने पर भी
स्टार्ट नहीं होती 


मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
क्योंकि मेरी कविता में
वह भूख तालियाँ बजाती है
जो भूख
कपड़े उतरवाती है
कपड़े पहनवाती है
भूखे को
फाइव स्टार होटल ले जाती है
और उसे भोजन की तरह परोसती है
अंग अंग परोसती है
और अहले सुभाह
उसे डस्टबीन में छोड़ जाती है
इस लिए मेरे दोस्त
मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे



फिर भी आप और हम तालियाँ बजाते हैं
नेताओं के भोंडे भाषणों पर
कभी उनके छिछले मजाकों पर
कभी पैसे ले कर
तो कभी
नेता के इशारों पर
हमारी सारी तालियों की आवाज
खो जाती  है हवा में  
और चुनाव के बाद तो
नेताजी भी हवा हो जाते हैं
और हम हाथ मलते रह जाते हैं
और नेता सत्ता की शराब की बोतलें
कभी यहाँ
कभी वहां
खोलता रहता है
और हम पीने के पानी के लिए
लाइन लगाते हैं


मेरी इस कविता के बाद

आप तालियाँ नहीं बजायेंगे
यह कवीता
तालियों के ब्यापार से अपने को
दूर रखना चाहती है
क्या आप भी
इन तालियों से दूर नहीं रहना चाहते हैं?








बुधवार, 22 सितंबर 2010

आजादी की अमर कहानी

अंग्रेजों       का         शासन   था
वे      करते      थे        मनमानी
शोषण   का  बाजार   गरम  था
व्यापारी      थे        क्रूर ब्रितानी
नित दिन कर का बोझ-बढाते
बड़े निरंकुश थे     अभिमानी


अट्ठारह सौ सत्तावन की
बात नहीं है बहुत पुरानी
सेना में विद्रोह मचा था
कंपित थे कप्तान ब्रितानी
खौल रहे थे विद्रोही सैनिक
गूंजित करते क्रांति वाणी

देख ब्रितानी तानाशाही
बोल उठे सब हिन्दुस्तानी
'अपनी तलवारें  चमकेंगी
हम सब देंगे अब कुर्बानी
किसान मजदूर साथ चलेंगे
हिल जाएगा राज ब्रितानी


गरज उठी थी लक्ष्मीबाई-
'सुन लो गोरे अभिमानी
ज्वाला बन कर मैं आई हूं
देख मेरी तलवार का पानी
हर दिल में भर दूंगी मैं
मर-मिटने की जोश-जवानी'


दिल्ली में तलवार उठा ली
बना शाह-जफ़र सेनानी
तात्याटोपे ने ललकारा-
देश की खातिर कर कुर्बानी
अहमदुल्ला और बख्तखान
बोल रहे थे- जागो हिन्दुस्तानी


बिहार के वीर कुंवर सिहं की
नभ को कंपित करती वाणी-
हाथों  में हथियार उठा लो
ऐसी चाल चलो तूफ़ानी
इन जालिम अंगेजो की
बचे न कोई यहां निशानी


गवर्नर जनरल डलहौजी ने
विद्रोह कुचलने की ठानी
उसकी पशुता नाच उठी थी
लहू बहाया जैसे पानी
छ्लछ्द्म का लिया सहारा
बौराई सेना ब्रितानी


सैकड़ों सैनिकों से घिरी
बोल उठी झांसी की रानी-
'मैं लहू से लिखूंगी पाती
उसे पढेंगे सब हिन्दुस्तानी
मां अपनी यह धरती होगी
बस आजादी की दीवानी'




अजादी की भेंट चढ गई
वीरांगना झांसी की रानी
बढती गोरों की बर्बरता
लगी दबाने क्रांति-वाणी
हंसते-हंसते झूल गए
फ़ांसी पर कितने बलिदानी




कुंवर सिंह भी हुए बलिदान
दे कर एक संदेश जुबानी-
'बंदी है अपनी भारत मां
है बेडियां तुमको चटकानी
तुम लिख दो अपने खून से -
खत्म करेंगे राज ब्रितानी'


बंदीग्रह में शाह जफ़र की
बेड़ियों से गूंजी वाणी-
'जान से प्यारा वतन हमारा
तुमसे मांग रहा कुर्बानी
इस माटी को चूम कसम लो-
यह गुलामी तुमको मिटानी


गले लगा कर फ़ंदे को
तात्या बोले-जय भवानी
जय जय भारत भारती मां
भर दे हर दिल जोश जवानी
हर चिनगारी दे कुर्बानी
बन आजादी की दीवानी


सन अट्ठारह सौ पचासी में
बन गई कांग्रेस जनवाणी
राष्ट्रीय आंदोलन की
बही पुरजोर हवा दीवानी
डब्ल्यू सी बनर्जी बोले
बढा कदम तू हिन्दुस्तानी


सन अट्ठारह सौ अट्ठानवे
कहर ढा रहे थे ब्रितानी
बड़ा ही क्रूर अन्यायी था
वायसराय कर्जन अभिमानी
राष्ट्रीय क्रांति को उसने
सख्ती से कुचलने की  ठानी

आकाश में जैसे चमके बिजली
गूंज उठी तिलक की वाणी
'आजाद कलम से लिखूंगा
जान ले अब राज ब्रितानी
गोरो ने भेजा उनको जेल
चमकी और तिलक की वाणी


गणपति उत्सव लगे मनाने 
देश में आई नई जवानी
शिवाजी उत्सव  की धूम मची
राष्ट्रीयता का उफ़ना पानी
'आजादी-जन्म सिद्ध अधिकार'
कंपित करती तिलक की वाणी-

'दमन बस दमन ही होता है
विरोध करेगी उसे जवानी
अंधा हो जो कानून अगर
उसकी कर दें अंत कहानी
वह पथ ही न्याय भरा होता
जिस पथ पर जाते बलिदानी'


फ़ूट डालो और राज करो
नीति लेकर चले ब्रितानी
धार्मिक विदूष लगे जगाने
खारा हुआ एकता का पानी
बनवा कर मुस्लिम लीग
गोरे चले चाल शैतानी


शोषक-सत्ता का चाबुक ले
गोरों ने फ़िर की शैतानी
जन सभा पर पाबंदी के
कानून बनाए ब्रितानी
भाषण पर भी रोक लगायी
गला घोंटता राज ब्रितानी


बंकिम गांए-बंदे मातरम
स्वर मिलाती देश की वाणी
आजादी का मंत्र बना यह
गाते थे सब बलिदानी
लगा इस गान पर पाबंदी
बौराए गोरे अभिमानी

सन उन्नीस सौ पंद्रह में
मानो अदभुत घटी कहानी
अफ़्रीका से भारत आकर
गांधी बने संत सेनानी
अहिंसा से लगे झुकाने
हिंसा का राज ब्रितानी
गांधी के सत्यग्रह पर थे
हंसते शासक ब्रितानी


पर सत्याग्रह की ताकत को
जल्दी ही सब ने पहचानी
था देश उमड़ता सागर-सा
सुन कर सत्यग्राह की वाणी


गोरों की बन्दूक तनी थी
गांधी की सत्य भरी वाणी
गोली गूंज कर चुप हो जाती
आकाश कपाते बलिदानी
देश गाता-वंदे मातरम
कदम बढाते स्वाभिमानी


लाया उन्नी सौ उन्नीस में
रौलेट एक्ट राज ब्रितानी
बिन सुनवाई के न्यायालय
लगा सजा सुनाने मममानी
काली नीति का हुआ विरोध
गरज उठा सागर का पानी


जन अभाओं पर लाठी बरसी
सैकड़ो गए कालापानी
तीस हजार लोगों ने थी
भर डाली जेल ब्रितानी
क्रोधित जनरल डायर के
ह्रदय में जागी शैतानी
जलियावाला बाग सभा में
डायर की करनी हैवानी
बच्चे-बूढों पर गोली दागी
हर आखों में छलका पानी
मारे गए हजार निहत्थे
उबल उठे सब हिन्दुस्तानी


युवा उधम सिंह ने ली शपथ
डायर को है सबक सिखानी
मेरे जीवन का होगा
यही सपना यही कहानी
लन्दन जा कर डायर को मारा
पूरी कर दी अपनी वाणी


सन उन्नीस सौ सत्ताइस में
उभरी  युवा शक्ति तूफानी
नेहरू, सुभाष, जयप्रकाश
उनकी न थी कोई सानी
उनके स्वर में स्वर मिलाते
उत्साही  युवा  हिन्दुस्तानी


क्रांतिकारी संगठन भी बने
भगत सिंह की गूजी वाणी
अपने खून से लिखेंगे हम
आजादी की एक कहानी
थर्राएंगे अंगेरेजों को
बन्दूकों से हम सेनानी


रामप्रसाद बिस्मिल बोले
कफ़न ओढ़ चलें हिन्दुस्तानी 
बम-बारूद के विस्फ़ोटों से
क्रांति की है आग जलानी
धू-धू कर के जल जाए यह
अत्याचारी राज ब्रितानी


बिस्मिल,असफ़ाकउल्ला ने
चढ फ़ांसी दे दी कुर्बानी
भगत राजगुरू,सुखदेव ने भी
चूमा फ़ंदा, बने बलिदानी
अंतिम सांस तक आजाद ने
थर्रा के रखा राज ब्रितानी


जेल में जतिन  थे अनशन पर
हो रही थी जनता दीवानी
'वंदे मातरम' का तुमुल नाद
तंरगित था गंगा का पानी
अनशन के चौसंठवें दिन
'जय-हिन्द' कह गया सेनानी


सन उन्नीस सौ अट्ठाईस में
फिर दुहराई चाल पुरानी
साइमन कमीशन था आया
मन में लिए बेईमानी
गांधी बोले-अब बहलाना
बंद करो,शासक ब्रितानी


'साइमन वापस जाओ' का
 लगाते नारा हिन्दुस्तानी
जत्थे में निकले सड़कों पर
<><><><>
<>
<><><><>
हर एक जत्था था तूफ़ानी
'पहनेगें नहीं विदेशी वस्त्र'
गूंज उठी स्वदेशी वाणी


लाजपत राय के संग निकले
झंडा लहराते बलिदानी
सांडर्स ने लाठी चलवाई
इंकलाब की गूंजी वाणी
लाजपत राय हुए घायल
कराह उठे सब हिन्दुस्तानी


सन उन्नीस सौ तीस में
सत्य, अहिंसा की वाणी
गांधी बोले-तोड़ेंगे हम
यह नमक कानून ब्रितानी
वह कोई कानून नहीं था
बस शोषण की एक कहानी


दांडी यात्रा की गांधी ने
तोड़ कर कानून ब्रितानी
अपने हाथों नमक बनाया
धरा गगन में कंपित वाणी
अपना विधान होगा प्रिय
जैसे यह गंगा का पानी


सन उन्नीस सौ बयालीस में
जनता हो उठी दीवानी
आजादी हम ले के रहेंगे
जिन्दगी क्यों न पड़े गंवानी
शोषण की सीमा लांघ गए
मुट्ठीभर ये क्रूर ब्रितानी


गांधी ने दिया पैगाम-
पूरी आजादी है लेनी
तो 'करो या मरो' की नीति
कफ़न बांध होगी अपनानी
बौखला उठे सब गोरे
सुन कर आजादी की वाणी


चली सत्याग्रहियों पर लाठी
जुलूसों पर बंदूकें तानी
नेताओ के  संग जेल गए
हजारों हजार जीवनदानी
घोषणा कर दी कांग्रेस ने
'छोड़ो भारत' अब ब्रितानी


सन उन्नीस सौ तैंतालीस में
गरजे नेताजी सेनानी-
देश के बंदे खून मुझे दो
खत्म करूंगा राज ब्रितानी
खाएंगे सीने पर गोली
हम आजादी के सेनानी'


सन उन्नीस सौ सैंतालीस में
ढल रहा था जब राज ब्रितानी
धर्म-द्वंद्व को और बढाया
दगें उनकी थी कारस्तानी
देश बांटने की चाल चली
लिखी करुणा भरी कहानी


गांधी की जय बोल रहा था
देश का हर स्वाभिमानी
गोरे भी अब समझ गए थे
नहीं टिकेगा राज ब्रितानी
समझौते की राह पर आए
फ़िर भी जारी रही शैतानी


पंद्रह अगस्त सैंतालीस को
देश बांट गए ब्रितानी
तिरंगा लाल किले पर लहरा
गूंजी नेहरु की वाणी
शतनमन करता है देश

जिसने दी प्राणों की  कुर्बानी
सब नाम-अनाम शहीदों को
याद रखेंगे हिन्दुस्तानी
जल कर ज्वाला में तुमने
जीवन की दे दी बलिदानी
अपने खून से लिखा तुमने
आजादी की अमर कहानी
याद रखेंगे हम हिन्दुस्तानी
आजादी का पाठ जुबानी

शनिवार, 11 सितंबर 2010

बिरसा की कहानी


आओ, सुनो सुनाते हैं हम             
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अट्ठार सौ  पचह्त्तर
पंद्रह नवम्बर दिवस सुनहला
चलक गांव, किरणों का मेला
मनभावन मैसम अलबेला
फ़ूल रही थी चम्पा बेला
डालों पर थी चिड़िया गाती
बहता गाता नदी का पानी।                                     
                                          
आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

नानी के घर जनमा बिरसा
सूरज सा वह स्वाभिमानी
हर्षित था पिता सुगना मुंडा
पाकर पुत्र बड़ा वरदानी
अपने गांव उलिहातू आया
बिरसा ने सब का मन हर्षाया
अपने ईश्वरीय तेज से
हर दिन गढता एक कहानी
जिसके घर में बिरसा जाता
बरसाता आंनद का पानी ।

आओ, सुनो  सुनाते हैं हम
बिरसा की अमर कहानी ।

बड़ा निडर था बालक बिरसा
तीर चलाता था वह ऐसा
नहीं चुकता कभी निशाना
उसका सबने लोहा माना
हाथ उसकी बांसुरी होती
तान सुरीली तब लहराती
सबके चंचल पैर थिरकते
कंठ-कंठ से गीत फ़ूटते
कोयल गाती,मोर नाचते

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

भोग रहा था देश गुलामी
शासन था बर्बर ब्रितानी
तब छाये डगर डगर में
शोषण, दमन और शैतानी
घर घर में थी भूख-गरीबी
कदम कदम पर बेईमानी
गांव गांव की देख दुर्दशा
दुखित था बिरसा स्वाभिमानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

राह चलते बालक बिरसा से
एक अंगरेज ने पूछा ऐसे-
"अरे,अरे, ओ काला लड़का
यह रास्ता जाता कैसे-कैसे ?"
सुन कर अभिमान भरी वाणी
उबला बिरसा स्वाभिमानी-
"रंग भेद की तू नीति रखता
सत्ता मद में डूबा स्वाभिमानी
कुछ ही वर्षों में बतला दूंगा
लन्दन कैसे  लौटें ब्रितानी।"
कांप उठी थी दसों दिशाएं
गूंजी जब यह बिरसा-वाणी
वह अंगरेज समझ गया था-
नहीं चलेगी तानाशाही
जाग उठे हैं स्वाभिमानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अट्ठारह सौ नब्बे में
हो उठे क्रूर ब्रितानी
वे कसते चले जा रहे थे
काले कानूनों के फंदे
बोझ करों का रोज बढ़ाते
सत्ता मद में हो कर अंधे
वन- पर्वत पर पहरे डाले
थे करते नित नई मनमानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

मन में सोचा युवा बिरसा ने
"हाय! यह कैसी करुण कहानी
गांव-गांव में आतंक का साया
घर-घर में है मातम छाया
हर क्षण मेरा मन रोता है
अब न सहूंगा यह मनमानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

जा कर राम मंदिर चुटिया में
वीर बिरसा ने मन में ठानी-
"तोड़ूंगा जंजीर पुरानी
खत्म करूंगा राज ब्रितानी
सबको होगा मुझे जगाना
गाऊंगा मैं नया तराना
विश्वास मुझे है, मिट जाएगी
अंग्रेजों की यहां निशानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सिर पर बांध कफन चल निकला
अग्नि पथ पर बिरसा बलिदानी
तीर-धनुष थे हाथों में
होठों पर आग उगलती वाणी
लगा माथे पर रक्तिम टीका
जगन्नाथ पुर में बिरसा गरजा-
"ओ साथी अब अंगरेजों को
इस धरती से जाना होगा
अंत हीन इनकी शैतानी
अब न सहो यह राज ब्रितानी
तीर, धनुष, तलवार संहालो
अंगरेजों पर हमला बोलो।"
धधक उठी क्रांति की ज्वाला
भय से कांप उठे ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

थी जन-मन में जोश जगाती
बिरसा के संघर्ष की वाणी
बाहें सबकी फड़क रही थीं
बिजली मन में कड़क रही थी
तलवार उठा युवा बोले-
"आग लगे या बरसे शोलें
हम सब तेरे पीछे, साथी
देने को जीवन-कुर्बानी
लेकिन तुमको बनना होगा
अपने जत्थे का सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा मुंडा बना सेनानी
उसके सैनिक थे तूफानी
तीर,धनुष, तलवार चमकाते
क्रांति के वे विगुल बजाते
गाते-"धरती का भगवान है,
साथी बिरसा अपना प्राण है,।"
उलगुलान की समां बनी थी
थे भयकंपित शासक ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
हबिरसा की यह अमर कहानी।

क्रांतिकारी प्रणबद्ध हुए-
"साथी हम सब देंगे कुर्बानी
अपना झंडा नहीं झुकेगा
मौत मिले या काला पानी।
अंगरेजों को कर नहीं देंगे
हक छीने कानून ब्रितानी
विदेशी शासन थर्रायेगा
जब कदम बढ़ेंगे तूफानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


बिरसा ने सबको समझाया-
"है अपनी पहचान बचानी,
तो याद रखो मेरी वाणी-
जहां तलवारें चुक जाती हैं
कलम वहां है ध्वज लहराती
है नूतन इतिहास बनाती
नया जमाना है अब आया
नयी हवा में ढलना होगा
गांव-गांव में जाना होगा
ज्ञान का दीप जलाना होगा
काम बड़ा है मुश्किल साथी
कदम मिला कर बढ़ना होगा
कुरीतियों से होगा लड़ना
होगी मन की भ्रांति मिटानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा ने सबको चेताया-
नशे की लत है बहुत पुरानी
घर- घर गढ़ती करुण कहानी
इसे सभी को तजना होगा
सड़े भात की बनती हड़िया
सबको यह बतलाना होगा-
शक्ति क्षीण कराती हड़िया
ॠण का जाल बनाती हड़िया
अपनी ही भूमि पर, साथी
है बेगार कराती हड़िया
गांठ बांध लो अब साथी
नशा करना है नादानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

धनुष टंकार कर गरजा था
चलकद में बिरसा मुक्तिदानी-
"नया क्षितिज, अनजान दिशा है
है कठिन राह पर कदम बढ़ाना
याद रखो यह मेरे साथी
धूर्त बड़े है ये ब्रितानी
बीज फूट के डाल विषैले
शासन शोसन करें मनमानी
उनसे लोहा लेना है तो
अपनी एकता हो चट्टानी
सजग रहें अब सारे साथी
मात करें सब चाल ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अटठारह सौ पंचानवे-
थे क्रोध में उबले ब्रितानी
कूट नीति के जाल फ़ैलाये
दमन के सौ सौ चक्की चलाये
क्रांति-ध्वज फ़िर भी लहराये
उफ़न रहे थे सब बलिदानी
धधक रही थी क्रांति ज्वाला
डोल उठा था राज ब्रितानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सिपाहियों पर गरज पड़ा था
मेयर्स पुलिस अधिकारी-
"हम पर है नित हमला जारी
कहां छिपा है क्रांतिकारी ?
ढूंढो बिरसा विद्रोही को
बुझा दो अब यह चिनगारी
सीने पर दागो उसके गोली
खत्म करो विद्रोह-निशानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

ढूंढ के हारे सभी सिपाही
मिली न बिरसा की निशानी
कुटिल मेर्यस समझ गया था-
है जगंल का बाघ बिरसा
चीता सा है फ़ुर्तीला बिरसा
है अपने में आंधी बिरसा
थी मेर्यस में घोर निराशा
चिंतित था चले कौन सा पासा?
बहुत सोचा और विचारा
फ़िर लिया फ़ैसला उसने-
"फ़ेकूंगा मैं छ्ल का फ़ंदा
तभी फ़ंसेगा यह तूफ़ानी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी ।

लेकर छल-छ्दम का सहारा
वन में बिरसा को जा घेरा
बंदी बना जन-जन का प्यारा
नयन-नयन छलका पानी
"रुके न अपनी क्रांति-धारा"
बोल गया था वह सेनानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी ।

बंदी बिरसा से जज ने पूछा-
"क्यों तोड़ा कानून ब्रितानी?
बोला बिरसा स्वाभिमानी-
"क्यों मानूं कानून ब्रितानी?
लूट का हथियार बना है
यह कानून बस शैतानी
जन हित में जो कानून नहीं
उसको कहते कानून कहीं?
सुनकर बिरसा की सच्ची वाणी
उबल पड़ा था जज ब्रितानी-
"जाओ जेल में चक्की पीसो
फ़िर न करोगे तुम नादानी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

दो बरस बाद जेल से लौटा
तपकर वह बिरसा सेनानी
भीड़ उमड़ पड़ी थी लोगों की
उबल रहे थे क्रांतिकारी
चलकद में भरमी मुंडा बोला-
"साथी, तुम थे उधर जेल में
इधर मची थी खूब मनमानी
लूट पाट और बेईमानी
बिगुल क्रांति का फिर से फूंको
साथ तुम्हारे सब बलिदानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


समझ गया था ये मुक्तिदानी-
"देनी होगी अब कुर्बानी।"
उठी गूंज बिरसा की वाणी-
"अब न सहेंगे बेईमानी
बहुत जुल्म ढाते हैं, साथी
ये तानाशाही ब्रितानी
साथी अब हथियार उठाओ
करो ध्वस्त राज ब्रितानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा क्रांति की ज्वाला में
खौल उठा तजना का पानी
थी गूंज उठी तब डुंबारी-
"आगे बढ़ो वीर सेनानी
साथी तेरे सब बलिदानी
देंगे जीवन की कुर्बानी।"
गरजी थी सिम्बुआ पहाड़ी-
"तुम वन के बाघ हो बिरसा
आजादी ही तेरी कहानी।"
सोनाहातु, कोलेबीरा,
सिहंभूम, जोरहाट, बानो,
तमाड़, तोरपा, खूंटी, कर्रा,
झारखंड का जर्रा-जर्रा
बिरसा की जय बोल रहा था
उत्साहित था वीर सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


क्रांति की जब आयी आंधी
हिल उठा तब राज ब्रितानी
पुलिस के थानों पर, साथी
तीर बरसते जैसे पानी
अंगरेजो के पिट्ठू भागे
आगे जिधर बढ़ा सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

डी॰सी॰स्ट्रीटफील्ड गरजा-
''बिरसा को है सबक सिखानी
झटपट सेना तैयार करो
मिटानी है विद्रोह निशानी
जारी है बिरसा की हैवानी
सिर के ऊपर बहता पानी
जहां सूरज नहीं डूबता
वही हमारा राज ब्रितानी
भूल गए हिन्दुस्तानी-
है गुलामी उनकी कहानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा आंधी तूफान बना था
प्रतिदिन लिखता नयी कहानी
मचल रहे थे सब क्रांतिकारी
देने को जीवन की कुर्बानी
गोरों के खेमे में भय था
थी खलबली और परेशानी
भकंपित थे सभी सिपाही
अधिकारी ने हार मानी-
"साहब, सुनिए बात हमारी-
बिरसा में है दैवी निशानी
आम आदमी उसको कहना
होगी अपनी ही नादानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

डी॰सी॰स्ट्रीटफील्ड चीखा-
"बंद करो यह कथा कहानी
देख तुम्हारी यह कायरता
होती है मुझको हैरानी
अब बिरसा को मैं ढूंढूंगा
उस पर मैं रखूंगा निगरानी।"
स्ट्रीटफील्ड खुद निकल पड़ा
जंगल जंगल उसने छाना
बेकार गयी छापामारी
व्यर्थ गया जाल बिछाना
बिरसा का कहीं पता न पाया
मिली न उसकी कोई निशानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

स्ट्रीटफील्ड तब झल्लाया-
"छल नीति होगी अपनानी
खोलूंगा मैं काली थैली्।
और खरीदूंगा घर-भेदी।
"फूट डालो और राज करो।"
है अपनी यह नीति पुरानी
बिरसा जल्दी बनेगा बंदी
मात खाएगा वह तूफानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

पोराहाट वन, रात आधी
होने को थी कुछ अनहोनी
श्रृंगालों की क्रंदन- वाणी
था चप्पे-चप्पे में दर्द समाया
सोये बिरसा पर लपके थे
ग्यारह लोभी घर के भेदी
जगते ही झट बिरसा बोला-
"आओ, अंगेरजों के पिट्ठू
बंधन डालो हाथ हमारे
मैं तैयार खड़ा बलिदानी।"
बंदी बना कर बिरसा को
स्वजनों ने की नादानी
दुख की गंगा उमड़ पड़ी थी
हर आंखों से ढलका पानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा के संग गए जेल में
उसके कई साथी बलिदानी
रांची जेल का जेलर था
ब्ड़ा क्रूर और अभिमानी
लगा सताने नित बिरसा को
ढाने जुल्म और शैतानी
रुग्ण हुई बिरसा की काया
रुकी न जेलर की हैवानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

नौ जून, सन उन्नीस सौ को
आई बेला बलिदानी
भरमी से बिरसा बोला-
"मेरा अब अंत समय आया
हंस कर दे दे आज विदाई
मत ढलका पलकों से पानी ।"
रोता सिसकता भरमी बोला-
"रोम-रोम जब रोते हों तो
कैसे बहला दूं आंखों को ?
लौह-पलक कहां से लाऊं
बतला दे साथी बलिदानी ?"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


भाव विभोर बिरसा बोला-
"है यह जीवन अनंत कहानी
साथी,मैं वन हूं, पर्वत हूं
मैं तजना का बहता पानी
सूरज की किरणों को देखो
दिखेगा तुमको मुक्तिदानी
ओ भरमी, मैं फ़िर आऊंगा
याद रखो यह सच्ची वाणी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

रश्मि-रथ में बैठे चला था
भारत का वह अमर सेनानी ।
हर दिल में तूफ़ान मचा था
हर आंखों में बरसा पानी
थे वन-पर्वत स्तब्ध खड़े
चुप थे मांदर और नगाड़े
साथी, जब विदा ले रही थी
पच्चीस बरस की भरी जवानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

शोषण- दमन के दिन बीते
रहा नहीं अब राज ब्रितानी
अपना शासन, अपनी नीति
नहीं कहीं है अब मनमानी
देश याद रखेगा,साथी
बिरसा की अनुपम बलिदानी
आज भी तजना का पानी
गाता जाता बिरसा वाणी-
"एकता में ही बल होता है
इसे तोड़ना है नादानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


(उलगुलान मुंडारी __ क्रांति
तजना_ झारखंड की एक पवित्र नदी)