सोमवार, 28 मार्च 2011

आँगन में
सुबह की सुहानी धूप
चूमती
दमकती
तुलसी की पत्तियां....
धूप में घुलती
होम  की धूम
चन्दन की अगरबत्तियों की
सुगंध
और साथ में खनकती
नई बहू   की पायल
प्रार्थना के मधु मिश्रित  स्वर -
हे सूर्य देव !
इसी तरह हर दिन
सुबह सुबह  आना
देर तक हमें किरणों से
उजाला देना
कर्म का सन्देश देना
हे सूर्य देव!
स्वीकारो जल का तर्पण
अक्षत मेरे आँचल के
श्रद्धा मेरी आत्मा से ......
आँगन में

सुबह की सुहानी धूप
चूमती
दमकती
तुलसी की पत्तियां....
धूप में घुलती
होम की धूम.........




 



रविवार, 27 मार्च 2011


इंसानीयत पर हैवानियत का साया


सच पे है क्यों आज झूठ का साया

क्यों ये नाते  तिजारत   हुए जा रहे
बागों पे है क्यों कातिलों का साया

डरी  हैं कलियाँ जो ये  खिलती नहीं
क्यों जिन्दगी पे  है मौत का  साया 

खेतों     पे    पसरी  है    बारूदी गंध 
चौपालों पे   क्यों है   चुप्पी   का साया

ये इंसां कर   गया   इतनी  तरक्की 
हर  दिल के ऊपर लोहे   का साया 

दोस्त बिना जिगर के आ रहे  नज़र
कहाँ कहा तक ये  नफरत का साया





  






शनिवार, 26 मार्च 2011

हो के मायूस न आँगन से उखाड़ो पौधे
धुप बरसी है तो बारिश भी यहीं होगी

अनंत काल से
समस्त ग्रह
एक दूजे  से कर रहे हैं प्रेम
कर रहे हैं संवाद सतत
मौन संवाद
शुद्ध संवाद
त्रुटिहीन संवाद
कभी एक दूजे से मिले नहीं
जब काल की धड़कने मिलती हों
जब आत्मा का स्पंदन  एक हो
जब लक्ष्य एक हो
तो हो जाता है अनजानों में प्रेम
प्रेम सच की भाषा है
ह्रदय की भाषा है
जब एक ह्रदय अपनी पहचान खो कर
दूसरे ह्रदय में समाविष्ट  हो जाता है
तब होता है प्रेम
प्रेम बाजार में तराजू से तौल कर नहीं होता
किसी प्रयोग के आधार पर नहीं होता
रूप रंग के आधार पर नहीं होता




शुक्रवार, 18 मार्च 2011





रूठ गयी है राधा मेरी ना खेलेगी रंग 
सूखी होली में कैसे भीगेगा  तन मन अंग

मिले न पिस्ता  बादाम क्या घोंटेंगे भंग
नाव चलेगी क्या चढ़ के इस बालू के तरंग

महंगी  की मुट्ठी में है सबका अब दिल तंग
आसमान में कट गया धागा चिद्दी हुई पतंग 

न मन बसिया न मन रसिया कहाँ छिपे अनंग
भूले कान्हा बाँसुरिया कौन बजाये मृदंग

बाजे न झांझ मजीरा टूटे सपने उडी पतंग
आओ चलें फकीरी में हम सब मस्त मलंग