रूठ गयी है राधा मेरी ना खेलेगी रंग
सूखी होली में कैसे भीगेगा तन मन अंग
मिले न पिस्ता बादाम क्या घोंटेंगे भंग
नाव चलेगी क्या चढ़ के इस बालू के तरंग
महंगी की मुट्ठी में है सबका अब दिल तंग
आसमान में कट गया धागा चिद्दी हुई पतंग
न मन बसिया न मन रसिया कहाँ छिपे अनंग
भूले कान्हा बाँसुरिया कौन बजाये मृदंग
बाजे न झांझ मजीरा टूटे सपने उडी पतंग
आओ चलें फकीरी में हम सब मस्त मलंग
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