मंगलवार, 30 नवंबर 2010

स्मृति के सारे दीप बुझा दो



कभी चुभे थे कांटे   मन में
अब भी  हर पल मुझे रूलाते
बीते दिन बन कर परछाई
मुझको बीती याद दिलाते

स्मृति के सारे दीप बुझा दो
मेरी अब पहचान मिटा दो

 बहते  आँसु    बहा  न  पाते
मेरी   आँखों     की   तस्वीरें
बन कर पत्थर की प्रतिमाएं
अब मेरी    पलकों   को  चीरें

आखों के अब द्वीप बुझा दो
मेरे   सारे  रंग     बहा      दो

बादल था मैं चाँद चूमता
तारों से अठखेली   करता
बरस धरा पर अब मैं रोता
लम्बी-लम्बी     साँसें   भरता

मेरा जीवन द्वीप बुझा दो
पूरा ही अस्तित्व मिटा दो



रविवार, 28 नवंबर 2010

जो टूटे नहीं वो नींद मुझको सुला जाइएगा



मेरे     दिल-ए-नाचीज    को भुला     जाइएगा
साथ गुजरे वो दिन वो रातें भुला जाइएगा

आहें   मेरी ये दर्द  मेरा यार  पिघलेगा कब
मेरे ख्वाबों   में आ के    मुझे रुला जाइएगा

मेरी     आँखों     से     तस्वीरें     मिटती    नहीं
जो टूटे नहीं वो नींद मुझको सुला जाइएगा

खिलखिलाती  हंसी वो खनकती आपकी चूड़ियाँ 
तितली-सी  उड़ती यांदों   को  जुदा कर जाइएगा

छोड़ के जा रहा हूँ मैं खुशनुमा चमन आपका
मेरी कब्र पर    एक    दिया तो जला जाइएगा

कभी भूले से याद   आए ये      नाचीज आपको
पहले पहले प्यार की गज़ल गुनगुना जाइएगा

शनिवार, 27 नवंबर 2010

अगर तलवारें निकली न होतीं म्यान से



चलती   रहती   ये    दुनिया बड़ी ईमान से
अगर तलवारें निकली न होतीं म्यान से

शरहदें   खून   से    तलवारों    ने    क्या    बनाईं 
आदमी शरहदों के दोनोंओर हुए अनजान से

इतिहास लिखने लगीं तलवारें लाशों पर
कलम    अक्षर   आदमी    हुए    बेजान   से

तमाशबीन या   आदमी   बन   गया तमाशा
हिल  गयी दुनिया तलवारों के फरमान से

जड़ दिए ताले तलवारों ने आदमी की जुबां पे
दुबक    गए    लोग   अँधेरी   गुफा में   बेजान से



कौन उड़ा ले गया कल्लू की मुर्गी

उसका दुपट्टा किसने चुराया
उसकी हंसी कौन ले गया
उसकी चींख कौन पी गया
उसके दिल को कौन रौंद गया
उसको कौन जिस्म बना गया 
सबने देखा किसीने न बताया

किसने चुराया माँ की लाडली को
किसने बेबसी पर पौरुष फहराया
किसने उसके बदन पर चींटियाँ दौरायीं
किसने रोशनी में
उसे अँधेरे का जाम पिलाया
किसने उसे बाजार का रास्ता दिखाया
सबने देखा पर किसीने न बताया

आसमान से सूरज किसने चुराया
रोशनी में बैठकर
अँधेरे का परचम किसने लहराया
कौन उड़ा ले गया कल्लू की मुर्गी
किसने छौंक  लगाई किसने पुलाव बनाया
सबने देखा किसीने न बताया

कौन पी गया नदी का सारा पानी
कौन निगल गया पहाड़
कौन उड़ा ले गया बादल
कौन चुरा ले गया चिड़ियों के बोल
सबने देखा पर किसीने न बताया

कौन चट कर गया बासमती
कौन मार गया मलाई
कौन पी गया उसकी  हंसी  
कौन निगल गया मासूम का सपना
कौन झोपड़ी में आग डाल गया
कौन उस अछूत को छू गया
सबने देखा पर किसीने न बताया  





शुक्रवार, 26 नवंबर 2010


उसकी जां से     किसने    जां छीन ली
फूलों से      किसने    महक    छीन    ली

यहाँ जो गाते थे कितना गुनगुनाते थे
उन परिंदों  से किसने जुबाँ    छीन   ली

किसने      बांधा     इस    दरिया को यहाँ
बहते पानी से किसने जिंदगी छीन ली

ये    चाँद     कैसे    बेनूर   हो   गया
हसीनों से किसने   हंसी छीन ली

झर    गए  कैसे    तितलियों   के   रंग
मुहब्बत से किसने गज़ल छीन ली

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

कलियों का मोल करे चंद लोग सौदागर


दुनिया बाजार बनी चंद लोग सौदागर
बेबसी के पेड़    उगे चंद   लोग सौदागर

दिलों   का   बाजार   सज   गया   है यहाँ
दिल का मोल करें चंद लोग सौदागर

अम्मा के आँगन से गुड़िया भी ले गए
कलियों का मोल करे चंद लोग सौदागर

जिसको दिन में अछूत बोलते रहे हैं
रात में पान बनाते चंद लोग सौदागर

बुधवार, 24 नवंबर 2010

वो चाँद मेरा रोता होगा कहीं



वो चाँद मेरा  रोता  होगा कहीं
दुपट्टे में   मुंह   छिपाए  तो नहीं   

काटे न कटी  होगी रात उसकी 
आहटों  पर वो  चौकी होगी कहीं

इन   पहाड़ों से   पूछा    होगा उसने
इस बाबले बादल का पता तो नहीं

उसने लिखी होगी भीगी-सी चिट्ठी
बना के अश्कों   की स्याही तो नहीं

वो     आयेंगें यहाँ मैं रहूँगा नहीं
इश्क से इश्क अब मिलेंगे नहीं





मंगलवार, 23 नवंबर 2010

तुम्हारी जुबान से मैं अपने गीत गाऊँगा

जब मैं नहीं रहूँगा
देखूंगा तुमको
चाँद की नजर से
नगमे सुनाऊँगा
भौंरे-सा गंगुनाऊँगा
बन के ख्यालों में
उड़ता-उड़ता आऊंगा.....
जब मैं नहीं रहूँगा
फूलों की गंध बन कर
तेरे दिल में भर जाऊँगा......
सुबह-शाम
मेरे होने का अहसास 
तुममें  जगाऊँगा
तब छेड़ोगे तुम
अपने दिल के तारों को
तुम्हारी जुबान से
मैं अपने गीत गाऊँगा.........

सोमवार, 22 नवंबर 2010

अगर कुछ नहीं बुन सकते तो सपने बुनो

अगर कुछ नहीं बुन सकते 
तो सपने बुनो
आकाश में महल  बनाने का
आकाश में पेड़ उगाने का
आकाश में अपनी दुनिया बसाने का
सपने बुनो
सुंदर सुन्दर सपने बुनो
उन्हीं सपनों से एक दिन
जन्म लेंगें
साकार सपने/साकार प्राण
साकार प्रेम/साकार शून्य
स्मृति में रहे यह बात-
जिसमें कुछ नहीं होता
उसमे बहुत कुछ होता है
हमने तो शून्य में भी
लिखे हैं इतिहास
रचे हैं प्राण
स्थापित किया है गणित
अंक का
और जीवन का भी
इस लिए कहता हूँ
अगर कुछ नहीं बुन सकते
तो सपने बुनो!