शुक्रवार, 26 नवंबर 2010


उसकी जां से     किसने    जां छीन ली
फूलों से      किसने    महक    छीन    ली

यहाँ जो गाते थे कितना गुनगुनाते थे
उन परिंदों  से किसने जुबाँ    छीन   ली

किसने      बांधा     इस    दरिया को यहाँ
बहते पानी से किसने जिंदगी छीन ली

ये    चाँद     कैसे    बेनूर   हो   गया
हसीनों से किसने   हंसी छीन ली

झर    गए  कैसे    तितलियों   के   रंग
मुहब्बत से किसने गज़ल छीन ली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें