कभी चुभे थे कांटे मन में
अब भी हर पल मुझे रूलाते
बीते दिन बन कर परछाई
मुझको बीती याद दिलाते
स्मृति के सारे दीप बुझा दो
मेरी अब पहचान मिटा दो
बहते आँसु बहा न पाते
मेरी आँखों की तस्वीरें
बन कर पत्थर की प्रतिमाएं
अब मेरी पलकों को चीरें
आखों के अब द्वीप बुझा दो
मेरे सारे रंग बहा दो
बादल था मैं चाँद चूमता
तारों से अठखेली करता
बरस धरा पर अब मैं रोता
लम्बी-लम्बी साँसें भरता
मेरा जीवन द्वीप बुझा दो
पूरा ही अस्तित्व मिटा दो
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