बुधवार, 1 दिसंबर 2010

सन्नाटे में दिल बहुत बोलता है


सन्नाटे में दिल बहुत बोलता है
खजाना  यादों का  यूँ  उमड़ता है


लगता है अभी-अभी वो मिले थे
पंख    लगा   के   ये  वक्त उड़ता है

उग आए कांटे जहाँ   फूल खिलते थे
फिर भी इक दीवाना वहां रहता है

इश्क    करता था    वो चांदनी से
अब पत्थरों को बावला चूमता है

मिटने का उसको कोई गम नहीं
नाचीज़  कब्र में भी  जी लेता है  

1 टिप्पणी:

  1. सन्नाटे में दिल बहुत बोलता है
    खजाना यादों का यूँ उमड़ता है

    लगता है अभी-अभी वो मिले थे
    पंख लगा के ये वक्त उड़ता है

    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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