अब आम लोग बेचारे क्या बोलेंगे...फैज़ अहमद फैज़ के कुछ सवाल ही सुन लीजिए- बोल, की लब आजाद हैं तेरे/ बोल, जबां अब तक तेरी है/तेरा सुतवां जिस्म है तेरा/ बोल की जान अब तक तेरी है....निदा फ़ाज़ली साहब तो और गजब ढाने के मूड में हैं, उनको लगता है की खुदा चुप है, इसलिए ही यहाँ बवाल हो रहे हैं- खुद है चुप आस्मां में/ लेकिन/ वो सांप-आदम को जिसके कारण/ खुदा ने जन्नत बदर किया था/ज़मी पे/ ताली बजा रहा है..यहाँ बताने की जरूरत नहीं की सांप-आदम कौन है..ग़ालिब ने आम आदमी की हालत पर बोल ही दिया-कर्ज की पीते हैं मै और समझते हैं कि हाँ/कि रंग लाएगी फाकामस्ती एक दिन.....नाचीज़ ने भी कह दिया-सच बोलना तो बस गुनाह हो गया है/आम आदमी बस काम करते-करते तबाह हो गया है....
गजानन माधव मुक्ति बोध की चिंता कालजयी हो रही है-नामंजूर/ उसको ज़िंदगी की शर्म की सी शर्त/नामंजूर/हठ इनकार का सिर तान/खुद/मुख्तार/कोई सोचता उस वक्त-छाए जा रहे हैं सल्तनत पर घने स्याह....बहुत सारे पहरेदार चोरी और हेराफेरी के धंधे में लग गए हैं. चौथा स्तम्भ भी कलंकित हो गया है.
बशीर बद्र ने और साफगोई से कह दिया-घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे/बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला....राजनीति में आदमी की तलाश एक असंभव सा काम हो गया है...एक आदमी था मनमोहन, लेकिन अकेला चना तो बेचारा ही होता है...जब पक्ष-विपक्ष के साथ चौथे स्तम्भ के तीस लोग जुड़ जाएं तो फिर खुदा ही मालिक है, देश का...
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