रविवार, 5 दिसंबर 2010

कलम हो गई बदनाम/ ठेकेदारों की झंडू बाम !



बोल कलम तेरी कैसे जय बोलूँ ?
कलम पत्रकार की
स्याही ठेकेदार की
स्वार्थ की स्याही
काले धन की स्याही
काली करतूतों की स्याही
सूख  गई पत्रकारिता की स्याही
गिर गया चौथा स्तम्भ भी
बोल कलम तेरी कैसे जय बोलूँ ?

कर गया कोई मोल
तुम्हारी कलम का-
शब्द बिक गए
रपट गढ़ दी गयी
कलम हो गई गुलाम
ठेके की नगरी में
कलम  हो गई बदनाम
ठेकेदारों की झंडू बाम ! 

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