शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010
वह जिन्दगी नहीं है श्मशान है.....
जिन्दगी बहुत ही अजीब चीज है
बहुत हिसाब मांगती है
बहुत परीक्षा लेती है
बहुत रुलाती है
बहुत हंसाती है
जिन्दगी वैसी सड़क जैसी होती है
जो चलने के काबिल नहीं होती
लेकिन मंजिल तक जाने के लिए
बस वही एक सड़क है
सबको उसी सड़क से
गुजरना पड़ता है
हंस के गुजरें या रो के गुजरें
जिन्दगी की सड़क पर
सिर्फ गड्ढे ही नहीं होते हैं
नुकीले पत्थर भी होते हैं
अगर जिन्दगी की सड़क पर चलना है
तो तलवो को खून से भीगने पर भी
अपने शरीर का भार
ढोने लायक बनाना पड़ता है
लेकिन जो
दूसरों के तलवे चाटने में
विश्वास रखते हैं
वे बिना एड़ियां घिसे
बहुत कुछ पा लेते हैं
जिन्दगी को गुलामी के नाम कर
जिन्दगी एक दिन के लिए
अगर वह गुलाम है तो
वह जिन्दगी नहीं है
श्मशान है.............
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें