वो चाँद मेरा रोता होगा कहीं
दुपट्टे में मुंह छिपाए तो नहीं
काटे न कटी होगी रात उसकी
आहटों पर वो चौकी होगी कहीं
इन पहाड़ों से पूछा होगा उसने
इस बाबले बादल का पता तो नहीं
उसने लिखी होगी भीगी-सी चिट्ठी
बना के अश्कों की स्याही तो नहीं
वो आयेंगें यहाँ मैं रहूँगा नहीं
इश्क से इश्क अब मिलेंगे नहीं
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