सोमवार, 9 मई 2011




कहाँ खिलते हैं कमल
यह देखना हम भूल गए
जूही चंपा चमेली  हम भूल गए
चाँद सूरज तारे को भी  भूल गए
भूल गए हम दूध दही माखन
भूल गए हम अपने मन के उपवन
गढ़ रहे हम अब नए रंग के  गीत रीत
भूल गए हम बचपन के मीत
जिस आँगन में पनपा जीवन
भूल गए हम वह आँगन
भूल  गए हम तो तुलसी चन्दन
भूल  गए हम अपनों का अभिनन्दन
याद न आता अपना गाँव 
अनजान डगर पर चल पड़े पाँव 
नक़ल करता अपना यह  जीवन
विकल्पों में जीता अपना यह  जीवन
कहाँ गए संवेदना के स्पंदन
भूल गए  करना हम  माटी का वंदन


  

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