शनिवार, 11 सितंबर 2010

बिरसा की कहानी


आओ, सुनो सुनाते हैं हम             
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अट्ठार सौ  पचह्त्तर
पंद्रह नवम्बर दिवस सुनहला
चलक गांव, किरणों का मेला
मनभावन मैसम अलबेला
फ़ूल रही थी चम्पा बेला
डालों पर थी चिड़िया गाती
बहता गाता नदी का पानी।                                     
                                          
आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

नानी के घर जनमा बिरसा
सूरज सा वह स्वाभिमानी
हर्षित था पिता सुगना मुंडा
पाकर पुत्र बड़ा वरदानी
अपने गांव उलिहातू आया
बिरसा ने सब का मन हर्षाया
अपने ईश्वरीय तेज से
हर दिन गढता एक कहानी
जिसके घर में बिरसा जाता
बरसाता आंनद का पानी ।

आओ, सुनो  सुनाते हैं हम
बिरसा की अमर कहानी ।

बड़ा निडर था बालक बिरसा
तीर चलाता था वह ऐसा
नहीं चुकता कभी निशाना
उसका सबने लोहा माना
हाथ उसकी बांसुरी होती
तान सुरीली तब लहराती
सबके चंचल पैर थिरकते
कंठ-कंठ से गीत फ़ूटते
कोयल गाती,मोर नाचते

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

भोग रहा था देश गुलामी
शासन था बर्बर ब्रितानी
तब छाये डगर डगर में
शोषण, दमन और शैतानी
घर घर में थी भूख-गरीबी
कदम कदम पर बेईमानी
गांव गांव की देख दुर्दशा
दुखित था बिरसा स्वाभिमानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

राह चलते बालक बिरसा से
एक अंगरेज ने पूछा ऐसे-
"अरे,अरे, ओ काला लड़का
यह रास्ता जाता कैसे-कैसे ?"
सुन कर अभिमान भरी वाणी
उबला बिरसा स्वाभिमानी-
"रंग भेद की तू नीति रखता
सत्ता मद में डूबा स्वाभिमानी
कुछ ही वर्षों में बतला दूंगा
लन्दन कैसे  लौटें ब्रितानी।"
कांप उठी थी दसों दिशाएं
गूंजी जब यह बिरसा-वाणी
वह अंगरेज समझ गया था-
नहीं चलेगी तानाशाही
जाग उठे हैं स्वाभिमानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अट्ठारह सौ नब्बे में
हो उठे क्रूर ब्रितानी
वे कसते चले जा रहे थे
काले कानूनों के फंदे
बोझ करों का रोज बढ़ाते
सत्ता मद में हो कर अंधे
वन- पर्वत पर पहरे डाले
थे करते नित नई मनमानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

मन में सोचा युवा बिरसा ने
"हाय! यह कैसी करुण कहानी
गांव-गांव में आतंक का साया
घर-घर में है मातम छाया
हर क्षण मेरा मन रोता है
अब न सहूंगा यह मनमानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

जा कर राम मंदिर चुटिया में
वीर बिरसा ने मन में ठानी-
"तोड़ूंगा जंजीर पुरानी
खत्म करूंगा राज ब्रितानी
सबको होगा मुझे जगाना
गाऊंगा मैं नया तराना
विश्वास मुझे है, मिट जाएगी
अंग्रेजों की यहां निशानी

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सिर पर बांध कफन चल निकला
अग्नि पथ पर बिरसा बलिदानी
तीर-धनुष थे हाथों में
होठों पर आग उगलती वाणी
लगा माथे पर रक्तिम टीका
जगन्नाथ पुर में बिरसा गरजा-
"ओ साथी अब अंगरेजों को
इस धरती से जाना होगा
अंत हीन इनकी शैतानी
अब न सहो यह राज ब्रितानी
तीर, धनुष, तलवार संहालो
अंगरेजों पर हमला बोलो।"
धधक उठी क्रांति की ज्वाला
भय से कांप उठे ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

थी जन-मन में जोश जगाती
बिरसा के संघर्ष की वाणी
बाहें सबकी फड़क रही थीं
बिजली मन में कड़क रही थी
तलवार उठा युवा बोले-
"आग लगे या बरसे शोलें
हम सब तेरे पीछे, साथी
देने को जीवन-कुर्बानी
लेकिन तुमको बनना होगा
अपने जत्थे का सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा मुंडा बना सेनानी
उसके सैनिक थे तूफानी
तीर,धनुष, तलवार चमकाते
क्रांति के वे विगुल बजाते
गाते-"धरती का भगवान है,
साथी बिरसा अपना प्राण है,।"
उलगुलान की समां बनी थी
थे भयकंपित शासक ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
हबिरसा की यह अमर कहानी।

क्रांतिकारी प्रणबद्ध हुए-
"साथी हम सब देंगे कुर्बानी
अपना झंडा नहीं झुकेगा
मौत मिले या काला पानी।
अंगरेजों को कर नहीं देंगे
हक छीने कानून ब्रितानी
विदेशी शासन थर्रायेगा
जब कदम बढ़ेंगे तूफानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


बिरसा ने सबको समझाया-
"है अपनी पहचान बचानी,
तो याद रखो मेरी वाणी-
जहां तलवारें चुक जाती हैं
कलम वहां है ध्वज लहराती
है नूतन इतिहास बनाती
नया जमाना है अब आया
नयी हवा में ढलना होगा
गांव-गांव में जाना होगा
ज्ञान का दीप जलाना होगा
काम बड़ा है मुश्किल साथी
कदम मिला कर बढ़ना होगा
कुरीतियों से होगा लड़ना
होगी मन की भ्रांति मिटानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा ने सबको चेताया-
नशे की लत है बहुत पुरानी
घर- घर गढ़ती करुण कहानी
इसे सभी को तजना होगा
सड़े भात की बनती हड़िया
सबको यह बतलाना होगा-
शक्ति क्षीण कराती हड़िया
ॠण का जाल बनाती हड़िया
अपनी ही भूमि पर, साथी
है बेगार कराती हड़िया
गांठ बांध लो अब साथी
नशा करना है नादानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

धनुष टंकार कर गरजा था
चलकद में बिरसा मुक्तिदानी-
"नया क्षितिज, अनजान दिशा है
है कठिन राह पर कदम बढ़ाना
याद रखो यह मेरे साथी
धूर्त बड़े है ये ब्रितानी
बीज फूट के डाल विषैले
शासन शोसन करें मनमानी
उनसे लोहा लेना है तो
अपनी एकता हो चट्टानी
सजग रहें अब सारे साथी
मात करें सब चाल ब्रितानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सन अटठारह सौ पंचानवे-
थे क्रोध में उबले ब्रितानी
कूट नीति के जाल फ़ैलाये
दमन के सौ सौ चक्की चलाये
क्रांति-ध्वज फ़िर भी लहराये
उफ़न रहे थे सब बलिदानी
धधक रही थी क्रांति ज्वाला
डोल उठा था राज ब्रितानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

सिपाहियों पर गरज पड़ा था
मेयर्स पुलिस अधिकारी-
"हम पर है नित हमला जारी
कहां छिपा है क्रांतिकारी ?
ढूंढो बिरसा विद्रोही को
बुझा दो अब यह चिनगारी
सीने पर दागो उसके गोली
खत्म करो विद्रोह-निशानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

ढूंढ के हारे सभी सिपाही
मिली न बिरसा की निशानी
कुटिल मेर्यस समझ गया था-
है जगंल का बाघ बिरसा
चीता सा है फ़ुर्तीला बिरसा
है अपने में आंधी बिरसा
थी मेर्यस में घोर निराशा
चिंतित था चले कौन सा पासा?
बहुत सोचा और विचारा
फ़िर लिया फ़ैसला उसने-
"फ़ेकूंगा मैं छ्ल का फ़ंदा
तभी फ़ंसेगा यह तूफ़ानी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी ।

लेकर छल-छ्दम का सहारा
वन में बिरसा को जा घेरा
बंदी बना जन-जन का प्यारा
नयन-नयन छलका पानी
"रुके न अपनी क्रांति-धारा"
बोल गया था वह सेनानी ।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी ।

बंदी बिरसा से जज ने पूछा-
"क्यों तोड़ा कानून ब्रितानी?
बोला बिरसा स्वाभिमानी-
"क्यों मानूं कानून ब्रितानी?
लूट का हथियार बना है
यह कानून बस शैतानी
जन हित में जो कानून नहीं
उसको कहते कानून कहीं?
सुनकर बिरसा की सच्ची वाणी
उबल पड़ा था जज ब्रितानी-
"जाओ जेल में चक्की पीसो
फ़िर न करोगे तुम नादानी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

दो बरस बाद जेल से लौटा
तपकर वह बिरसा सेनानी
भीड़ उमड़ पड़ी थी लोगों की
उबल रहे थे क्रांतिकारी
चलकद में भरमी मुंडा बोला-
"साथी, तुम थे उधर जेल में
इधर मची थी खूब मनमानी
लूट पाट और बेईमानी
बिगुल क्रांति का फिर से फूंको
साथ तुम्हारे सब बलिदानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


समझ गया था ये मुक्तिदानी-
"देनी होगी अब कुर्बानी।"
उठी गूंज बिरसा की वाणी-
"अब न सहेंगे बेईमानी
बहुत जुल्म ढाते हैं, साथी
ये तानाशाही ब्रितानी
साथी अब हथियार उठाओ
करो ध्वस्त राज ब्रितानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा क्रांति की ज्वाला में
खौल उठा तजना का पानी
थी गूंज उठी तब डुंबारी-
"आगे बढ़ो वीर सेनानी
साथी तेरे सब बलिदानी
देंगे जीवन की कुर्बानी।"
गरजी थी सिम्बुआ पहाड़ी-
"तुम वन के बाघ हो बिरसा
आजादी ही तेरी कहानी।"
सोनाहातु, कोलेबीरा,
सिहंभूम, जोरहाट, बानो,
तमाड़, तोरपा, खूंटी, कर्रा,
झारखंड का जर्रा-जर्रा
बिरसा की जय बोल रहा था
उत्साहित था वीर सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


क्रांति की जब आयी आंधी
हिल उठा तब राज ब्रितानी
पुलिस के थानों पर, साथी
तीर बरसते जैसे पानी
अंगरेजो के पिट्ठू भागे
आगे जिधर बढ़ा सेनानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

डी॰सी॰स्ट्रीटफील्ड गरजा-
''बिरसा को है सबक सिखानी
झटपट सेना तैयार करो
मिटानी है विद्रोह निशानी
जारी है बिरसा की हैवानी
सिर के ऊपर बहता पानी
जहां सूरज नहीं डूबता
वही हमारा राज ब्रितानी
भूल गए हिन्दुस्तानी-
है गुलामी उनकी कहानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा आंधी तूफान बना था
प्रतिदिन लिखता नयी कहानी
मचल रहे थे सब क्रांतिकारी
देने को जीवन की कुर्बानी
गोरों के खेमे में भय था
थी खलबली और परेशानी
भकंपित थे सभी सिपाही
अधिकारी ने हार मानी-
"साहब, सुनिए बात हमारी-
बिरसा में है दैवी निशानी
आम आदमी उसको कहना
होगी अपनी ही नादानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

डी॰सी॰स्ट्रीटफील्ड चीखा-
"बंद करो यह कथा कहानी
देख तुम्हारी यह कायरता
होती है मुझको हैरानी
अब बिरसा को मैं ढूंढूंगा
उस पर मैं रखूंगा निगरानी।"
स्ट्रीटफील्ड खुद निकल पड़ा
जंगल जंगल उसने छाना
बेकार गयी छापामारी
व्यर्थ गया जाल बिछाना
बिरसा का कहीं पता न पाया
मिली न उसकी कोई निशानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

स्ट्रीटफील्ड तब झल्लाया-
"छल नीति होगी अपनानी
खोलूंगा मैं काली थैली्।
और खरीदूंगा घर-भेदी।
"फूट डालो और राज करो।"
है अपनी यह नीति पुरानी
बिरसा जल्दी बनेगा बंदी
मात खाएगा वह तूफानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

पोराहाट वन, रात आधी
होने को थी कुछ अनहोनी
श्रृंगालों की क्रंदन- वाणी
था चप्पे-चप्पे में दर्द समाया
सोये बिरसा पर लपके थे
ग्यारह लोभी घर के भेदी
जगते ही झट बिरसा बोला-
"आओ, अंगेरजों के पिट्ठू
बंधन डालो हाथ हमारे
मैं तैयार खड़ा बलिदानी।"
बंदी बना कर बिरसा को
स्वजनों ने की नादानी
दुख की गंगा उमड़ पड़ी थी
हर आंखों से ढलका पानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

बिरसा के संग गए जेल में
उसके कई साथी बलिदानी
रांची जेल का जेलर था
ब्ड़ा क्रूर और अभिमानी
लगा सताने नित बिरसा को
ढाने जुल्म और शैतानी
रुग्ण हुई बिरसा की काया
रुकी न जेलर की हैवानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

नौ जून, सन उन्नीस सौ को
आई बेला बलिदानी
भरमी से बिरसा बोला-
"मेरा अब अंत समय आया
हंस कर दे दे आज विदाई
मत ढलका पलकों से पानी ।"
रोता सिसकता भरमी बोला-
"रोम-रोम जब रोते हों तो
कैसे बहला दूं आंखों को ?
लौह-पलक कहां से लाऊं
बतला दे साथी बलिदानी ?"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


भाव विभोर बिरसा बोला-
"है यह जीवन अनंत कहानी
साथी,मैं वन हूं, पर्वत हूं
मैं तजना का बहता पानी
सूरज की किरणों को देखो
दिखेगा तुमको मुक्तिदानी
ओ भरमी, मैं फ़िर आऊंगा
याद रखो यह सच्ची वाणी ।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

रश्मि-रथ में बैठे चला था
भारत का वह अमर सेनानी ।
हर दिल में तूफ़ान मचा था
हर आंखों में बरसा पानी
थे वन-पर्वत स्तब्ध खड़े
चुप थे मांदर और नगाड़े
साथी, जब विदा ले रही थी
पच्चीस बरस की भरी जवानी।

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।

शोषण- दमन के दिन बीते
रहा नहीं अब राज ब्रितानी
अपना शासन, अपनी नीति
नहीं कहीं है अब मनमानी
देश याद रखेगा,साथी
बिरसा की अनुपम बलिदानी
आज भी तजना का पानी
गाता जाता बिरसा वाणी-
"एकता में ही बल होता है
इसे तोड़ना है नादानी।"

आओ, सुनो सुनाते हैं हम
बिरसा की यह अमर कहानी।


(उलगुलान मुंडारी __ क्रांति
तजना_ झारखंड की एक पवित्र नदी)

6 टिप्‍पणियां:

  1. गीत के रूप में सुंदर कहानी...बहुत अच्छी...बधाई

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट ...इसके माध्यम से हमें बिरसा के बारे में बहुत जानकारी मिलती है ! बहुत बहुत धन्यवाद
    यहाँ भी पधारे
    विरक्ति पथ

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  3. bohot hi badiya lekhan hai aapka.... bohot dilchasp.... hamesha likhte rahiye :)

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  4. सेवा में
    सर क्या बिरसा पर गीत आपने लिखा है
    यदि हाँ तो किरपा इसे पाठ्यक्रम में सामिल करने की अनुमति दे
    तेजपाल सिंह धामा
    9528393509

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