थक गया हूँ चलते चलते साँसें उखड़ गयीं
मेरी गलियां सपनों की यूं ही की उजड़ गयीं
हरे भरे पेड़ों के पत्ते झर झर कर झर गए
सारी तस्वीरें मंदिर की यूं ही बिखर गयीं
जिन पुरानी यादों में मेरा मन रमता था
उन यादों पर उदासियाँ यूं ही पसर गयीं
पड़ने लगा है पीला जीवन का हर इक पन्ना
हृदय की सारी इच्छाएँ यूं ही ठिठुर गयीं
है तो राह वही पर उसने दिशा बदल ली
दो प्यारी-प्यारी चिड़ियाँ यूं ही बिछुड़ गयीं
कलम कांप रही है पन्ने फड़फड़ा रहे हैं
विराम के पूर्व पंक्तियाँ यूं ही सिहर गयीं
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