बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

क्यों निकला आह से गान?



क्यों निकली कंठ से आह?
क्यों निकला आह से गान?
चलो पूछते हैं,
वाल्मीकि से
"मैं था क्रूर दस्यु
दया और संवेदना
मेरे पेशे में वर्जित थीं
लेकिन, एक  दिन कुछा ऐसा घटा-
तमसा नदी के तट पर
मैं जा रहा था
कर रही थी क्रौंची करुण विलाप
मृत क्रौंच को देख
उसे मारने वाले व्याध पर 
वह नन्हीं  सी जान क्रौंची
बीच-बीच में
हमला भी कर रही थी
पिघल गया मेरे अंदर का दस्यु
और मैं बोल पड़ा अनुष्टुप छंद में-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: शमा: 
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधि: काममोहितम...
फिर मेरी इसी आह से निकला गान..."
चलो पूछते हैं बुद्ध से
क्यों निकला आह से गान?
"जब तक मैं था राजमहल में
अछूता था मैं दुःख से
लेकिन,  एक दिन जब 
निकला राजमहल से बाहर
तो दुःख ही दुःख देखा
और मैं सिद्धार्थ से बुद्ध बन गया
और  हर आह के लिए मेरे मुख से
दया, क्षमा, करुणा की फूट पड़ी धारा
और राजमहल को त्याग मैं
पहुच गया दीन-दुखियों के बीच
तलाशने छोटे-छोटे सुख
दुखों के बीच जन्म लेने वाले सुख..."
क्यों निकली कंठ से आह?  
क्यों निकला आह से गान?






















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