नसीब ढीला दिल कतरा कतरा हो गया था
नाकामयाबी का जो खतरा हो गया थाअपने ही नसीब में क्यों काली रातें थीं
सबका ही नसीब क्यों सुनहरा हो गया था
शायद मेरा यही सोचते रहना ही कहीं
मेरी जिन्दगी का इक दायरा हो गया था
पास अपने खुदा ने जो बख्शा देखा नहीं
दूसरों की गली में मेरा फेरा हो गया था
झोंपड़ी से उस महल को देखते - देखते
क्या मैं बस सपनों का चितेरा हो गया था
महल की रोशनी देखी ईंटो के आँसु नहीं
शायद मेरा मन ही अन्धेरा हो गया था
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