शुक्रवार, 6 मई 2011




तू ही अमृत
तू ही आचल
तू ही छाया स्नेह की
तू ही ममता
तू ही संवेदना
तू ही काया सेवा की
तू ही वृक्ष
तू ही नदी
तू ही झरना प्रेम की
तू ही अर्चना
तू ही पूजा
तू ही अग्नि  यज्ञ   की 
तू ही राग 
तू ही गीत 
तू ही ज्योति जीवन की  

1 टिप्पणी:

  1. माँ तो सबसे अच्छी होती है.....और माँ ही सब कुछ होती है..... बहुत अच्छा लिखा आपने.....

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